मरकज निजामुद्दीन वाले प्रकरण का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत और हिंसा भड़काने के लिए किया जा रहा है. इसमें राजनेताओं, सरकारों, मीडिया और सोशल मीडिया, सब की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं.

देश में भाजपा सरकार बनते ही एक तबके का मन बढ़ गया. जिसके बाद मुसलमानों के खिलाफ अत्याचार और हिंसा के मामले बढे और सरकार मौन सहमति के साथ चुप रही. आज पूरी दुनिया कोरोना महामारी की जद में है. उसके बाद भी देश की उन्मादी या कह सकते है अशांति प्रेमियों ने कोरोना का मुस्लिमीकरण कर दिया. उसके बाद बिकाऊ मीडिया को एक ऐसा मशाला मिल गया की उसने देहारी मजदूरों की ख़बरों को ही स्क्रीन से हटा दिया.

बात शुरू होती है दक्षिणी दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में तबलीगी जमात नामक मुस्लिम धार्मिक संस्था के दिल्ली मुख्यालय ‘मरकज निजामुद्दीन’ में मार्च महीने के बीच में एक सम्मलेन में शामिल होने के लिए देश-विदेश से हजारों लोग आए थे. अधिकारियो का कहना है कि विदेश से इस सम्मलेन में आए किसी यात्री के जरिए कोरोना वायरस यहां आया और फिर सम्मलेन में आए और लोगों में उसका संक्रमण फैल गया. संक्रमित लोग जब दिल्ली से निकल अलग अलग राज्यों में अपने घर वापस गए तो संक्रमण और राज्यों तक भी फैल गया.

केंद्र सरकार और कुछ राज्य सरकारों ने भी इस प्रकरण को तूल देने की पूरी कोशिश की . जहाँ एक ओर केंद्र सरकार की रोजाना होने वाली प्रेस वार्ता में मरकज से संबंधित मामलों के आंकड़े अलग से दिए जाने लगे तो वही दिल्ली सरकार भी रोज मरकज से जुड़े आंकड़े अलग से बताती रही है. केंद्र सरकार ने बिना सोचे समझे यहां तक कह दिया था कि पूरे देश में संक्रमण के जितने मामले हैं उनमें से 30 प्रतिशत से भी ज्यादा मामले मरकज से ही संबंधित हैं. केंद्र के इस वाक्य का क्या असर पड़ेगा देश पर उसने सोचा भी नहीं. कभी यह नहीं बताया गया कि मरकज से जुड़े कुल कितने मामलों की जांच हुई है और उनमें से कितने प्रतिशत लोग संक्रमित पाए गए हैं. केंद्र और दिल्ली सरकार का मरकज पर बयान हमेशा सक के दायरे में ही रहा. अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने यहां तक तक कह दिया कि जमात के सदस्यों ने ‘तालिबानी जुर्म’ किया है.

बात देश की मीडिया की करे तो पिछले कुछ वर्षो में इसने मुस्लिम विरोधी होने की पहचान ही बना ली है. इस करना ही मीडिया को मुस्लिम विरोधी गर्म मशाला मिलते ही उसने उसे परोसना शुरू कर दिया और इस जल्दीबाजी में कई फेक न्यूज़ का प्रशारण भी हो गया. फेक न्यूज़ का दौर ऐसा चला की खुद पुलिस को आकर ख़बर की खंडन करनी पड़ी. इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया ने जो नफरत का खेल खेला उसके बाद सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप ने नफरत की वो खाई को इतना बढ़ा दिया कि ये नफरत जमाती से हट कर मुस्लिम विरोधी सेंटीमेंट को ही जन्म दे दिया. इसका नतीज़ा ये हुआ कि कहीं मुस्लिम समुदाय को हिन्दुओ के कॉलोनियों में आने पर रोक लगा दी गयी तो कही फल-सब्जी वालो का नाम पूछ कर मारा जाने लगा.

पंजाब के होशियारपुर में कई मुस्लिम गुज्जर परिवारों के साथ मार-पीट कर उन्हें उनके गांव से निकाल दिया गया है, सिर्फ इसलिए कि वे मुस्लिम हैं. मजबूरी में स्वान नदी के तले पर रह रहे इन परिवारों की शिकायत है कि जब से निजामुद्दीन मरकज वाली खबर फैली है तब से आस पास के गांवों के लोग भी उन्हें परेशान कर रहे हैं, बावजूद इसके कि वे कभी दिल्ली गए भी नहीं.

दिल्ली से सटे गुड़गांव के धनकोट गांव में शनिवार चार अप्रैल को चार युवकों ने उनके गांव की मस्जिद पर गोलियां चला दीं. युवकों को अब पुलिस ने हिरासत में ले लिया है. पुलिस का कहना है कि चारों युवक निजामुद्दीन मरकज वाले प्रकरण के बारे में सुन कर परेशान थे और यह सुनिश्चित करने मस्जिद गए थे कि वहां कहीं कोई छिपा तो नहीं है. पुलिस के अनुसार युवकों ने कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर देखा था कि मरकज की तरह उनके गांव की मस्जिद में भी लोग छिपे हुए हैं.

पांच अप्रैल को दिल्ली के बवाना इलाके में कुछ युवकों ने एक मुस्लिम युवक को बुरी तरह पीटा क्योंकि उन्हें संदेह था कि वे कोरोना वायरस से संक्रमित हैं और जान-बूझकर संक्रमण फैला रहा है. मुस्लिम युवक को बाद में बचा लिया गया और उस पर हमला करने वाले युवकों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है.

छह अप्रैल को झारखंड के गुमला में एक अफवाह के फैलने के बाद एक मुस्लिम युवक के साथ मार-पीट की गई. युवक को बचा लिया गया लेकिन उसके एक दिन बाद उसी मार-पीट को लेकर मुस्लिम और आदिवासी समुदायों के कुछ लोगों के बीच फिर मार-पीट हुई जिसमें एक आदिवासी युवक की जान चली गई और कई लोग बुरी तरह से घायल हो गए.

स्थानीय मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार अफवाह उड़ायी गई थी कि कुछ लोग गांव में घुसकर कोरोना वायरस फैला रहे हैं और कुएं में थूक रहे हैं, थूके हुए नोट फेंक रहे हैं और छींक रहे हैं. इस तरह की अफवाहों का बाजार अभी भी गरम है. गुमला में अभी भी अफवाहों की वजह से हो रही झड़पों की खबर आ रही है.

वही बिहार में भी कई इलाको में सब्जी-फल वालो को कॉलोनी में घुसने पर रोक लगा रखी है तो कुछ इलाको में नाम पूछ कर फल-सब्जी ख़रीदा जा रहा है. सरकार और मीडिया के समावेश से जो नफ़रत का जहर घोला गया है ये देश के स्वस्थ के लिए बेहतर नहीं है.

मुस्लिम को जिस तरीके से टारगेट किया गया कि नेताओं और सरकारों को आधिकारिक रूप से लोगों से इसके खिलाफ अपील करनी पड़ी है और चेतावनी भी देनी पड़ी है. महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने बयान जारी कर के कहा कि वायरस धर्म नहीं देखता और लोगों को महामारी का साम्प्रदायिकरण नहीं करना चाहिए. ऐसी ही अपील बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी के सभी सदस्यों से भी की. बिहार के DGP ने आदेश जारी किया की अगर किसी भी सोशल साइड पर धार्मिक नफ़रत फ़ैलाने की बात हुई तो पुलिस कड़ी से कड़ी करवाई करेगी.

नीति आयोग की हाल में हुई एक बैठक में भारत में संयुक्त राष्ट्र की रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर रेनाटा लोक-देसालिये ने कहा कि कुछ विशेष समुदाय के लोगों को कलंकित किया जा रहा है और इस के खिलाफ कदम उठाने की आवश्यकता है. इसके अगले दिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने लोगों को ऐसा ना करने के लिए एक एडवाइजरी भी जारी की. वहीं भारत ने इसे संयुक्त राष्ट्र का भारत के निजी मामलों में हस्तक्षेप बताया है और इस पर आपत्ति जाहिर की है.

क़ायम साबरी