विपक्षी एकता का दिखा साथ, मोदी ने कहा नो टेंशन
लोकसभा में विपक्षी एकता द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव 12 घंटे की चर्चा के बाद जब अपने अंत तक पहुंचा तब यह साफ हो चुका था कि यह केवल मात्र एक शक्ति परीक्षण था। इस परीक्षण में किसी ने खोया कुछ नहीं पर यहां से कई बातें स्पष्ट हो गई। 2019 का लोकसभा चुनाव कांटे की टक्कर होगी अगर विपक्षी एकता देखने को मिली। मोदी वर्सेज ऑल की यह लड़ाई काफी दिलचस्प होगी। इस अविश्वास प्रस्ताव ने सरकार के हौसले को और भी बुलंद किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो तंज कसते हुए यहां तक कह दिया कि यह अविश्वास प्रस्ताव नहीं बल्कि कांग्रेस के कथित साथियों का फ्लोर टेस्ट है जिसमें ट्रायल चल रहा है कि मैं पीएम बनूंगा। मोदी एक कुशल वक्ता हैं उन्होंने राहुल गांधी पर के भाषण का जवाब तंज कसते हुए दिया और अंत में अविश्वास प्रस्ताव पास भी किया।
विपक्ष को करना होगा होमवर्क
अविश्वास प्रस्ताव में जिस प्रकार 451 सांसदों ने भाग लिया, जहां विपक्ष द्वारा लाया गया प्रस्ताव 126 के मुकाबले 325 मतों से गिर गया। इससे यह साफ पता चलता है कि जिस प्रकार सरकार आत्म विश्वास से लबरेज चल रही है विपक्ष के लिए होमवर्क करना जरूरी है। अविश्वास प्रस्ताव में विपक्षी एकता पहली बार दिखाई पड़ी है। यह गठबंधन के विस्तार से नेता चयन के राह अवश्य खोलती है, पर यह देखना होगा कि अपनी स्वहित पोषित राजनीति में त्याग और बलिदान के लिए कितनी पार्टियां खड़ी होती है, क्योंकि विपक्ष के पास मोद हटाओ देश बचाओ का नारा तो है पर उसे हकीकत में तबदील करने के लिए सर्वमान्य नेता नहीं है।
राहुल का दिखा नया क्लेवर
तेलूगु देशम पार्टी द्वारा आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए लाये गये इस प्रस्ताव को तमाम विपक्षी पार्टियों द्वारा समर्थन प्राप्त था। हालांकि लोकसभा में और देश में सबकी नजरें मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी पर टिकी थी, जिनका सीधा सामना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से होने वाला था। राहुल गांधी ने अपने चिर परिचित अंदाज में नए क्लेवर के साथ लोकसभा में जब बोलना आरंभ किया तो उनकी शैली विपक्ष के परिपक्व नेता के तौर पर थी। उन्होंने विभिन्न मुद्दों को उठाकर सत्ता पक्ष को घेरा, राफेल सौदे से लेकर डोकलाम और किसानों तक बेहद संजीदगी से बोले। लेकिन नए क्लेवर को पेश करने में उन्होंने ऐसी बातें भी छेड़ी जिन पर भाजपा नेताओं के साथ-साथ कांग्रेस और विपक्ष के सभी नेता भी अपनी हंसी नहीं रोक पाये। हालांकि राहुल गांधी को झप्पी देने को छोड़कर सारी बातें उनके समर्थन में जाती यदि वो आंख नहीं मारते। इसने मीडिया में उनकी किरकिरी करने का मौका दे दिया।
व्यवहारिक प्रयोगों से बनेगी बात
भारतीय मीडिया और जनता शायद ही राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरूद्ध मजबूत नेता मानता हो, लेकिन राहुल गांधी ने भी हर मोर्चे पर देश के सामने खुद को एक दावेदार के रूप में प्रस्तुत किया है। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उनके भाषण में यह बात नजर भी आई। राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के सर्वमान्य नेता हैं। विपक्ष के नेता के तौर पर राहुल गांधी को जटिल प्रयोगों से बचकर व्यवहारिक सोच के साथ विपक्षी एकता की जरूरतों को समझना होगा तभी इस देश की जनता तक उनकी बात स्पष्ट हो सकेगी। मुद्दों के चयन से लेकर सर्वमान्य नेता तक सारी पहल राहुल गांधी को स्वंय करना चाहिए, विपक्ष में तब जाकर एक मैसेज जायेगा और वह विपक्षी एकता को एक्टिवेट करेगा।
नए-पुराने साथियों की होगी तलाश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा 2019 के लिए इसलिए आश्वस्त नजर आ रहें हैं कि उन्हें लगता है, उनके विरूद्ध विपक्ष की यह धूरी तैयारी नहीं हो पाई है। फिर भी विपक्षी एकता की बात उनके लिए चिंता का सबब बन सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष इस बात से भलिभांति अवगत हैं कि उन्हें संख्याओं के खेल में अव्वल आना होगा तभी इस विपक्षी एकता की शक्ति को रोका जा सकता है। हालांकि इस अविश्वास प्रस्ताव ने भाजपा के मनोबल को और भी मजबूत किया है। परंतु साथ ही उनसे अलग होते साथी 2019 में उनके लिए मुसिबत न बन जायें यह भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसलिए वे अपने पुराने साथियों को एक करने की पहल के साथ नए साथियों की तलाश में जुटे हैं। हालांकि क्षेत्रीय पार्टियों की वैचारिक मतभिन्नता और वोट बैंक की राजनीति उनके राह में रोड़ा बन सकती है। इसलिए अब वादे होंगे, दावे होंगे और नारे होंगे और साथ ही होगा हाई वोल्टेज राजनीतिक ड्रामा। तो इस अविश्वास प्रस्ताव ने प्रश्नों पर विराम नहीं लगया बल्कि नए प्रश्न खड़े कर दिये है।