कोरोना वायरस का वैक्सीन को ले कर कई तरह की बाते आ रही एक तरफ वैज्ञानिक का कहना है कि टीका बनने में कम से कम 12 से 18 महीने लग जाएंगे वही दूसरी ओर वी भी वैज्ञानिक है जिनका दावा है कि वैक्सीन जून तक तैयार हो जायेगा.

मैसाचूसेट्स स्थित अंतर्राष्ट्रीय संस्था में मैनेजमेंट साइंस फ़ार हेल्थ की सीईओ और अध्यक्ष मारियन वेंटवर्थ कहती हैं कि यह वाक़ई इस बात पर निर्भर है कि आप वैक्सीन बना लेने से क्या अर्थ ले रहे हैं. यदि आप का तात्पर्य वह वैक्सीन है जो व्यापक स्तर पर चलाए जाने वाले टीकाकरण अभियान में प्रयोग किया जाए तब तो सही है कि इसमें 12 से 18 महीने लेगेंगे. लेकिन अगर आप ऐसा वैक्सीन बनाना चाहते जो सीमित स्तर पर प्रयोग किया जाए जैसे चिकित्सा कर्मियों के लिए आप प्रयोग करना चाहते हैं जो इस महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई में फ़्रंटलाइन पर हैं तो यह वैक्सीन कुछ हफ़्तों या कुछ महीनों में तैयार हो सकता है. WHO के मापदंडों का पालन करते हुए यह काम अफ़्रीक़ा में फैलने वाली इबोला महामारी के लिए किया गया था.

आक्सफ़ोर्ड युनिवर्सिटी ने गर्मी का मौसम आने तक वैक्सीन तैयार हो जाने की बात कही है. सारा गिलबर्ट के नेतृत्व में वैक्सीन पर काम करने वाली टीम ने यह बात कही है कि क्लिनिकल ट्रायल के तीसरे चरण में वैक्सीन सफल रहा है और पतझड़ के मौसम से पहले इसका व्यापक उत्पादन शुरू होने की संभावना है.

कोई भी वैक्सीन किसी जानवर पर टेस्ट किए जाने से पहले लैब में तैयार किया जाता है. जब क्लिनिकल टेस्ट से पहले के चरण में इसका अच्छा और सुरक्षित नतीजा मिल जाता है तो फिर उसका क्लिनिकल टेस्ट शुरू होता है. यह टेस्ट तीन चरणों में होता है और हर अगले चलण में पिछले चरण से ज़्यादा लोगों पर इसको टेस्ट किया जाता है.

किसी भी वैक्सीन को लाइसेंस देने की प्रक्रिया भी लंबी होती है जिस पर कुछ लोगों को आपत्ति भी है. लंदन स्कूल आफ़ हाईजीन एंड ट्रोपिकल मेडिसिन नामक वैक्सीन सेंटर के अध्यक्ष बीट कैम्पमैन का कहना है कि अब जब महामारी सामने है तो वह लंबी प्रक्रिया मददगार नहीं है. अभी तक कोविड-19 के जितने भी वैक्सीन पर काम हुआ है उनमें से कोई भी लाइसेंस हासिल करने के स्टेज तक नहीं पहुंच सका है.

पैरिस के पास्चर इंस्टीट्यूट में भी एक वैक्सीन पर काम हो रहा है लेकिन वह प्रीक्लिनिकल डेवलपमेंट के स्टेज में है. मगर इसकी अच्छाई यह है कि अगर इसने अपने चरण पूरे कर लिए तो इसकी लाइसेंसिग प्रक्रिया तेज़ी से पूरी हो जाएगी.

वही WHO के सहयोग से भी इस पर काम हो रहा है कि ट्रायल प्रक्रिया को तेज़ किया जाए और एक साथ कई देशों में टेस्ट हो. एक प्रोपोज़ल यह है कि स्वस्थ लोगों पर ट्रायल किया जाए मगर वैज्ञानिकों की नज़र में यह प्रस्ताव उचित नहीं है.