कोरोना को लेकर रोज कोई ना कोई नयी जानकारी आती ही है. BCG पर न्यूयॉर्क इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के डिपार्टमेंट ऑफ बायोमेडिकल साइंसेस ने किये अध्यन में पाया है कि जिस देश में BCG की वेक्सीन दी जाती है वहां कोरोना के केस कम देखने को मिले है. उसने कहा है कि अमेरिका और इटली जैसे देशों में BCG वैक्सीनेशन की पॉलिसी नहीं है, वहां आप कोरोना के मामले देख सकते है वही दूसरी ओर जापान और ब्राजील जैसे देशों में इटली और अमेरिका के मुकाबले केस और मौतें फिलहाल कम देखने को मिल रही है.

बेसिलस कामेट गुएरिन (BCG) यह टीबी और सांस से जुड़ी बीमारियों को रोकने वाला टीका है. BCG को जन्म के बाद से छह महीने के बीच लगाया जाता है. दुनिया में सबसे पहले इसका 1920 में इस्तेमाल हुआ. ब्राजील जैसे देश में तभी से इस टीके का इस्तेमाल हो रहा है.

न्यूयॉर्क इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के डिपार्टमेंट ऑफ बायोमेडिकल साइंसेस ने एक स्टडी की. यह स्टडी 21 मार्च को सामने आई. BCG वैक्सीनेशन और इसके कोरोना पर असर का पता लगाना इसका मकसद था. इसमें बिना BCG वैक्सीनेशन पॉलिसी वाले इटली, अमेरिका, लेबनान, नीदरलैंड और बेल्जियम जैसे देशों की तुलना जापान, ब्राजील, चीन जैसे देशों से की गई, जहां बीसीजी वैक्सीनेशन की पॉलिसी है. इसमें चीन को अपवाद माना गया क्योंकि कोरोना की शुरुआत इसी देश से हुई थी.

वैज्ञानिकों ने पाया कि BCG वैक्सीनेशन से वायरल इन्फेक्शंस और सेप्सिस जैसी बीमारियों से लड़ने में मदद मिलती है. इससे ये उम्मीदें जागी कि कोरोना से जुड़े मामलों में BCG वैक्सीनेशन अहम भूमिका निभा सकता है. अलग-अलग देशों से मिले आंकड़ों और वहां मौजूद हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर पर गौर करने के बाद वैज्ञानिक दो नतीजों पर पहुंचे.

  1. जिन देशों में BCG वैक्सीनेशन हो रहा है, वहां कोरोना की वजह से मौत के मामले में कम हैं. जहां BCG की शुरुआत जल्दी हुई, वहां कोरोना से मौतों के मामले और भी कम सामने आए. जैसे- ब्राजील ने 1920 और जापान ने 1947 में BCG का वैक्सीनेशन शुरू कर लिया था. यहां कोरोना फैलने का खतरा 10 गुना कम है. वहीं, ईरान में 1984 BCG का टीका लगना शुरू हुआ. इससे ये माना जा रहा है कि ईरान में 36 साल तक की उम्र के लोगों को टीका लगा हुआ है लेकिन बुजुर्गों को यह टीका नहीं लगा है. इस वजह से उनमें कोरोना का खतरा ज्यादा है.
  2. जिन देशों में BCG वैक्सीनेशन नहीं है, वहां संक्रमण के मामले और मौतें भी ज्यादा हैं. ऐसे देशों में अमेरिका, इटली, लेबनान, बेल्जियम और नीदरलैंड शामिल है, जहां कोरोना के फैलने का खतरा 4 गुना ज्यादा है.

वैज्ञानिकों ने कहा कि हो सकता है कि BCG कोरोना वायरस से लंबे समय तक सुरक्षा दे लेकिन इसके लिए ट्रायल करने होंगे. यह स्टडी सामने आने के बाद ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, जर्मनी और यूके ने कहा है कि वे कोरोनावायरस के मरीजों की देखभाल कर रहे हेल्थ वर्कर्स को BCG का टीका लगाकर ह्यूमन ट्रायल शुरू करेंगे. वे यह देखेंगे कि क्या इस टीके से हेल्थ वर्कर्स का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है. ऑस्ट्रेलिया ने भी बीते शुक्रवार कहा कि वह देश के करीब 4 हजार डॉक्टरों और नर्सों और बुजुर्गों पर BCG वैक्सीन का ट्रायल शुरू करेगा.

भारत की बात करे तो यहाँ 72 साल से BCG का टीका लग रहा. न्यूयॉर्क इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की स्टडी में भारत का कोई जिक्र नहीं है लेकिन इस स्टडी को भारत के संदर्भ में अगर पढ़ें तो माना जा सकता है कि BCG का टीका भारत के लोगों को भी कोरोना से बचाने में मददगार साबित हो सकता है. भारत में BCG का टीका पहली बार 1948 में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू हुआ था. अगले ही साल यानी 1949 में इसे देशभर के स्कूलों में शुरू किया गया. 1951 से यह बड़े पैमाने पर होने लगा. 1962 में जब राष्ट्रीय टीबी प्रोग्राम शुरू हुआ तो देशभर में बच्चों को जन्म के तुरंत बाद यह टीका लगाया जाने लगा. इस हिसाब से ये माना जा सकता है कि भारत में बड़ी आबादी को BCG का टीका लगा हुआ है. अभी देश में जन्म लेने वाले 97% बच्चों को यह टीका लगाया जाता है.