-अभिषेक कुमार
भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें एवं अंतिम तीर्थंकर थे। जैन धर्म को एक अलग दिशा प्रदान करने में भगवान महावीर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भगवान महावीर को कैवल्य की प्राप्ति हुई थी, उन्होंने अपने उपदेशों में कैवल्य ज्ञान पर बल दिया है। भगवान महावीर का सत्य और अहिंसा का संदेश जैन धर्म को विशिष्ट बनाता है। महावीर के पंचशील सिद्धांत-अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय और ब्रह्मचर्य है, जो कैवल्य प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है। महावीर धर्म की व्याख्या को विश्ष्टि रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनका कहना है कि, अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है। धर्म सबसे उत्तम मंगल है। जिसके मन में सदा धर्म रहता है उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। महावीर ने अपने प्र्र्रवचनों में पंचशीलों के अतिरिक्त क्षमा पर भी बल दिया है। क्षमा की विवेचना करते हुए महावीर ने स्पष्ट किया क्षमा मांगना और क्षमा करना जीव के मन में धर्म की स्थापना करता है।
भगवान महावीर का कथन, उपदेश, प्रवचन, सिद्धांत अहिंसा पर टिका है, एवं अहिंसा केवल वर्तमान समय की ही नहीं, बल्कि चिरकाल तक जगत के उद्धार के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए जब तक पृथ्वी है तब तक भगवान महावीर प्रासंगिक हैं। अहिंसा परमो धर्मः भगवान महावीर का दिया गया संदेश है। हालांकि इस अहिंसा परमो धर्मः का उल्लेख सर्वप्रथम महाग्रंथ ’महाभारत‘ में किया गया है।, लेकिन महावीर ने अपने सिद्धांत में अहिंसा पर बल देकर इस संदेश की विश्व में प्रचलित कर दिया। महावीर का यह संदेश मानव जाति में धर्म की स्थापना, जीवों के बीच प्रेम का प्रसार और वैश्विक शांति के उद्धेश्य को उल्लेखित करता है। महावीर ने पांच इंद्रियों वाले जीवों पर हिंसा की प्रवृति को समाप्त करने का संदेश दिया।
महावीर ने अपने पंचशील सिद्धांतों में ब्र्रह्मचर्य पर जोर दिया था। उन्होंने ब्रह्मचर्य को मोक्ष की प्राप्ति का साधन बताया है। उन्होंने अपने प्रवचनों में व्रत, तपस्या, नियम, झान, दर्शन, संयम और चरित्र पर अधिक बल दिया है। उनके अनुसार तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। महावीर के अनुसार ब्रह्मचर्य जीवन के मार्ग को स्पष्ट करता है। उनके पंचशील सिद्धांतों में अहिंसा के पश्चात ब्रह्मचर्य जैन धर्म में प्रचलित हुआ।
भगवान महावीर को कैवल्य झान की प्राप्ति हुई थी। महावीर ने कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति के मार्ग को राजपथ कहा है। मोक्ष प्राप्ति को ही जैन धर्म में कैवल्य ज्ञान कहा गया है। कैवल्य की स्थिति में मनुष्य आत्मा के चितस्वरूप होकर आवागमन से मुक्ति पा लेता है। वेदांत के अनुसार परमात्मा में आत्मा की लीनता और न्याय के अनुसार अदृष्ट के नाश होने के फलस्वरूप आत्मा की जनममरण से मुक्तावस्था को कैवल्य कहा गया है। महावीर के उपदेशों के अनुसार मनुष्य को पंचशील सिद्धांतों के पालन करने के पश्चात जीवन में विरोधाभास के द्वंद से से छुटकारा मिलेगा और सत्य से परिचय होगा। सत्य से परिचय होना ही कैवल्य की प्राप्ति होना है।
महावीर जयंती में प्रभातफेरी शोभायात्रा निकाली जाती है। शेभायात्रा में भगवान महावीर की प्रतिमा को रथ पर लेकर बैठा जाता है। पंचरंगी केसरिया ध्वज लेकर भगवान महावीर के प्रतिपादित सिद्धांतों के नारे लगाये जाते है। सारे विश्व में शांति होने की प्रार्थना की जाती है। जगह-जगह पर पानी एवं शरबत पिलाने की व्यवस्था की जाती है। ये सब भगवान महावीर के प्रति प्रेम, श्रद्धा, स्नेह और समर्पण का प्रतीक है। ये कर्म सिद्ध करते हैं कि भगवान महावीर का पंचशील सिद्धांत संपूर्ण मानव जाति के लिए कैवल्य प्राप्ति का साधन हो सकता है।