सेहत : हेपेटाइटिस हो या कोई अन्य बीमारी उसके बारे में जानकारी बचाव का अच्छा उपाय है. बात हेपेटाइटिस की करे तो इसको लेकर जागरूकता की कमी बड़ी समस्या है. ज्यादातर लोग चिकित्सक के पास तभी जाते हैं, जब लक्षण उभरने लगते हैं. अक्सर ऐसा तब होता है, जब लिवर पर वायरस का असर पड़ चुका होता है. ऐसे में लक्षणों की जानकारी व जागरूकता जान बचा सकती है.

डॉ. अभिषेक कुमार की मानें तो इस संक्रमण की समय पर पहचान के लिए पीलिया, सफेद या काली दस्त, अतिसंवेदनशील त्वचा, गहरे रंग की पेशाब, भूख मिट जाना, अपच व उल्टी, पेट में दर्द, पेट में सूजन, थकान, फ्लूड रिटेंशन जैसे लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए. इन लक्षणों के अतिरिक्त बीमार महसूस करना, अक्सर सिरदर्द होना, चिड़चिड़ापन बढ़ना, आकस्मित बॉडी नीला पड़ना या खून आना भी लिवर में खराबी के लक्षण हो सकते हैं. इन लक्षणों को पहचान कर समय पर डॉक्टर की सलाह इस गंभीर संक्रमण से बचने में सहायक हो सकती है.

डॉ. अभिषेक ने बताया कि हेपेटाइटिस का अर्थ है इन्फ्लेमेशन ऑफ लिवर यानी लिवर की सूजन. इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द ‘हेपर’ से हुई है, जिसका अर्थ है लिवर. इन्फ्लेमेशन प्राय: किसी बैक्टीरिया, वायरस, ज्यादा शराब के सेवन, नशीली दवाओं के सेवन या ऑटोइम्यून डिजीज की वजह से हो सकता है. उन्होंने बोला कि हेपेटाइटिस वायरस के पांच प्रकार ए, बी, सी, डी व ई है.

हेपेटाइटिस ए व ई संक्रमित भोजन व पानी से फैलते हैं. इनका मरीज आमतौर पर उपचार के बाद पूरी तरह अच्छा हो जाता है. हेपेटाइटिस ई गर्भवती स्त्रियों के लिए ज्यादा नुकसानदेह होता है. हेपेटाइटिस ए से बचाव के लिए टीका भी उपलब्ध है.

हेपेटाइटिस डी का खतरा उन मरीजों को ज्यादा रहता है, जिन्हें पहले से हेपेटाइटिस बी का संक्रमण हो. इसका पर्याप्त उपचार उपलब्ध नहीं है. बचाव ही इसका इलाज है.

हेपेटाइटिस के वायरस में बी व ज्यादा खतरनाक माने जाते हैं. ये वायरस एक आदमी से दूसरे में फैलते हैं. संक्रमित सुई व असुरक्षित यौन संबंध इसके प्रसार का कारण बन सकते हैं. हेपेटाइटिस बी के वायरस को शरीर से पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता है. हालांकि, कुछ दवाएं वायरस को दबाने में सक्षम हैं. इसका टीका उपलब्ध है, जो आदमी को इसके संक्रमण से बचाने में सहायक है. वहीं हेपेटाइटिस सी का कोई टीका उपलब्ध नहीं है. हालांकि कुछ दवाएं हैं, जिनसे ज्यादातर (95 फीसदी से ज्यादा) मरीज अच्छा हो जाते हैं. हेपेटाइटिस का समय पर इलाज न होने से लिवर सिरोसिस, लिवर फेल्योर, गंभीर बीमारियों व लिवर कैंसर का खतरा रहता है.