ज्वलंत ख़बर: बॉम्बे हाईकोर्ट ने ‘दलित’ शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगा की बात कही है.वही दूसरी ओर सूचना प्रसारण मंत्रालय ने भी सलाह दी है कि इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाए. हाईकोर्ट की नागपुर पीठ पंकज मेश्राम द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इसमें सभी सरकारी दस्तावेजों और पत्रों से दलित शब्द को हटाने की मांग की गई है. हाईकोर्ट ने मीडिया में भी दलित शब्द पर रोक लगाने पर विचार करने को कहा है.
न्यायमूर्ति बी पी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति जेड ए हक की पीठ ने कहा की , ‘‘चूंकि केंद्र सरकार ने अधिकारियों को जरूरी निर्देश जारी किया है, इसलिए हम पाते हैं कि उस कानून के अनुसार प्रेस काउंसिल और मीडिया को दलित शब्द का इस्तेमाल करने से बचने के लिए उपयुक्त निर्देश जारी कर सकती है.’’
मेश्राम के वकील एस आर नानावारे ने अदालत को छह जून को सूचित किया कि केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने 15 मार्च को एक सर्कुलर जारी किया था जिसमें केंद्र और राज्य सरकार को दलित शब्द का इस्तेमाल करने से बचने और उसकी जगह अनुसूचित जाति से जुड़ा व्यक्ति शब्द का इस्तेमाल करने की सलाह दी थी. अधिवक्ता डी पी ठाकरे ने कहा कि राज्य भी इस मामले में फैसला करने की प्रक्रिया में है.
नानावारे ने कहा कि इस सर्रकुलर के आधर पर मीडिया को भी दलित शब्द का इस्तेमाल बंद करना चाहिए. अदालत ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह इस मुद्दे पर विचार करे. इस मामले की जनहित याचिका पर अदालत ने कहा , ‘‘हम सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को निर्देश देते हैं कि वह मीडिया को इस तरह का निर्देश जारी करने के सवाल पर विचार करे और छह सप्ताह के भीतर उपयुक्त फैसला करे. ’’
फैसले के बाद इस मुद्दे पर राजनीतिक बहस शुरू हो गयी. राजनितिक गलियारों में सभी का मानना है की नाम बदलने से कुछ नहीं होने वाला जबकि ये नाम एक समुदाय की एकता को संबोधित करता है. आज ये शब्द संघर्ष का प्रतीक बन गया है. इस पर कोई बाध्यता नहीं होनी चाहिये. ये कोई अपमानजनक शब्द नहीं है. इसके इस्तेमाल पर रोक लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है.’ इस शब्द का इस्तेमाल पहली बार 1967 में किया गया जब इस नाम से एक संगठन खड़ा हुआ. इसका सीधा मतलब दबे कुचले लोगों से है.