अनुज अवस्थी: कांग्रेस समेत सात विपक्षी दलों की औऱ से चीफ जस्टिस आॅफ इंडिया यानि कि दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस राज्यसभा के सभापति और देश के उपराष्ट्रपति एम वंकैया नायडू को देने के बाद भारतीय लोंकतंत्र से लेकर न्याय तंत्र तक गहमा-गहमी मची हुई है। राजनैतिक गलियारों में अलग-अलग तरीके की सुगबुगाहट देखी जा रही है।
हलांकि सत्ताधारी दल यानि कि भाजपा इसका पुरजोर विरोध कर रही है। उपराष्ट्रपति नायडू महाभियोग के प्रस्ताव को आगे बढ़ाएंगे या फिर इसे अमान्य घोषित करेंगे। ये सवाल सबके मन में कोंध रहा है। तमाम मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सीजेआई के खिलाफ महाभियोग को लेकर विपक्ष की जमींंन ज्यादा मजबूत नहीं है। और इसके साथ ही राज्यसभा में पर्याप्त समर्थन भी हासिल नहीं है। तो ऐसे में अंदाजा लगया जा सकता है कि विपक्षी दलों के लिए महाभियोग की डगर आसान नहीं है।
वैसे आपको बता दें कि आजादी से लेकर अब तक 1970 में सिर्फ एक बार महाभियोग के नोटिस को खारिज किया गया था। क्योंकि न्यायाधीश स्पीकर महोदय को समझाने में कामयाब हो गए थे कि मसला गंभीर नहीं है।
मीडिया रिर्पोट्स के मुताबिक जब तक महाभियोग का नोटिस सभापति वंकैया नायडू के द्वारा आगे नहीं बड़ा दिया जाता तब तक भारत के मुख्य नयायाधीश को न्यायिक गतिविधियों से अलग नहीं किया जा सकता है। विपक्ष के द्बारा दिए गए नोटिस को अगर सभापति जांच के लिए स्वीकार कर लते हैं तो ऐसी स्थिति में मुख्य न्यायधीश को अपने आपको न्यायिक गतिविधियों से दूर रखना होगा। कानून के जानकारों के मुताबिक ऐसा नैतिकता के आधार पर किया जाता है कोई संवैधानिन बाध्यता नहीं है।
अगर सभापति ने नोटिस को किया अस्वीकार तो क्या होगा:
कानून जानकारों के मुताबिक अगर राज्यसभा के सभापति वंकैया नायडू महाभियोग के प्रस्ताव वाले नोटिस को खारिज यानि कि अस्वीकार कर देेत हैं तो ऐसी स्थिति में इस मामले को लेकर कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
नोटिस स्वीकार के बाद क्या होगी प्रक्रिया:
राज्यसभा के सभापति और देश के उपराष्ट्रपति एम वंकैया नायडू अगर इस नोटिस को स्वीकार कर लेते हैं, तो इसके बाद तीन सदस्यों वाली एक समिति तैयार की जाएगी जो इस मामले की जांच करेगी। इस तीन सदस्यों वाली समिति में पहला सदस्य मुख्य न्यायाधीश या फिर सुप्रीम कोर्ट के जज, दूसरा सदस्य किसी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और तीसरा सदस्य कोई कानूनविद यानि कि कानून का जानकार होगा। याद रहे जिसके उपर महाभियोग लगया जा रहा है उस मुख्य न्यायाधीश को इस समिति में शामिल नहीं किया जा सकता।
आपको जानकारी के लिए बता दें कि इस तीन सदस्यों वाली समित तीन महीने के अंदर जांच कर अपनी रिपोर्ट सोंपती है। हलांकि संविधान में इस समय अवधि को बढ़ाने का प्रावधान है। अगर ये समिति जांच के दौरान मुख्य न्यायाधीश के कामकाजों और उसके रवयै को गलत पाती है तो फिर ये तीन सदस्यों वाली समिति अपनी जांच की रिपोर्ट देश के महामहिम यानि कि राष्ट्रपति को सौंपती है। इसके बाद महाभियोग जांच के आधार पर अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए फैसला सुनाते हैं।