पटना : लोक जनशक्ति पार्टी में चाचा और भतीजे के बीच घमासान मचा हुआ है. मंगलवार को पारस ने जहां चिराग को पार्टी अध्यक्ष पद से हटा दिया, वहीं चिराग ने बागी सभी पांच सांसदों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. इन घटनाक्रमों के बाद यह तय है कि यह राजनीतिक परिवार की लड़ाई का पटाक्षेप जल्दी नहीं होता दिख रहा है. मतलब साफ़ है चाचा-भतीजे की लड़ाई अभी लम्बी चलनी है.

दो दिनों से शांत लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने भी अब अपने तेवर कडे कर लिए हैं. लोजपा के प्रवक्ता अशरफ अंसारी ने कहा “पार्टी संविधान स्पष्ट कहता है कि अध्यक्ष स्वेच्छा से या उसके निधन के बाद ही अध्यक्ष पद से हट सकता है.” उन्होंने कहा कि पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मंगलवार को पांच सांसदों को पार्टी से निकाल दिया गया है. बैठक में कम से कम कार्यकारिणी के 35 से ज्यादा सदस्यों की संख्या की जरूरी थी जबकि बैठक में 40 से अधिक सदस्य भाग लिए.

उन्होंने कहा कि पांचों सांसदों को हटाने का प्रस्ताव पार्टी के प्रधान सचिव अब्दुल खलिक लाए और सर्वसम्मति से उन पांचो को हटा दिया गया. सूत्र कहते हैं कि पारस गुट अब तक पार्टी के प्रदेश अध्यक्षों और अन्य पदाधिकारियों के समर्थन जुटाने में असफल रही है.

फिलहाल चिराग अध्यक्ष पद की हैसियत से तकनीकी तौर पर मजबूत चाल चली है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में बागी सांसदों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है. ऐसी स्थिति में ये सभी बागी सांसद लोजपा में जब होंगे ही नहीं तो चुनाव आयोग के पास गए भी तो चिराग के पास जवाब देने के लिए जवाब होंगे.

वही पशुपति पारस ने एक निजी समाचार चैनल से बात करते हुए कहा कि लोजपा के छह सांसदों के दल के नेता की मान्यता लोकसभा अध्यक्ष ने दी है. उन्होंने लोजपा में इस परिवर्तन को स्वाभाविक परिवर्तन बताते हुए कहा कि नेता परिवर्तन सभी दलों में होता है. उन्होंने कहा कि लोजपा के अधिकांश सदस्य एनडीए के साथ बिहार चुनाव में जाना चाहते थे. लोजपा के गलत चुनाव लड़ने से विवाद गहराया.