संसार के सभी प्राणी अपने हित अहित की बात जानते हैं और उसी के अनुसार जीवनशैली को अपनाते हैं। सभी प्राणियों में ब्रह्मा की सर्वोत्तम रचना मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो सब कुछ जानता है फिर भी खुद ही अपने लिए संकट उत्पन्न कर लेता है। अपनी बुद्धि का प्रयोगं समाज कल्याण के लिए करने का दायित्व उसे मिला पर हुआ इसके विपरीत।
प्राचीन काल में हमेशा मानव आदर्श समाज बनाने के यत्न करता था, किन्तु आज सद्भावना और सहयोग की भावना घटती जा रही है। मनुष्य विकास और महत्वाकांक्षा की पागल दौड़ में ऐसे भाग रहा है, जिससे तमाम तरह की विद्रूपता फैल रही है। ब्रह्म लोक भी मनुष्य के अहंकार, धूर्तता एवं पाप कर्मों से परेशान है। अब तो ब्रह्मा भी स्वयं इसके लिए चिन्तित हैं और समाधान नहीं दिख रहा है।
यह कोई कपोल कल्पना नहीं अपितु इन सारी घटनाओं को दर्शकों ने अपनी आँखों से देखा। देखकर सभी सोचने को विवश हो गए।
इन सभी घटनाओं को नाटक में दिखाया गया। रविवार की शाम को दर्शकों की भारी रिबेल थिएटर के द्वारा भीड़ के मध्य ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर संगीत व नाटक विभाग के प्रेक्षागृह मे ‘मायारामक माया’ का सफलता पूर्वक मंचन अवधेश अरुणा भारद्वाज के प्रभावशाली निर्देशन में हुआ। जयप्रकाश सिंह ऊर्फ जयवर्धन रचित मूल हिन्दी नाटक का मैथिली अनुवाद शिवम झा ‘शाण्डिल्य’ ने किया। इसके मंचन की दर्शकों ने काफी तारीफ की।
कृष्णा रॉय,राजेश शर्मा,वारिधि विशाल,शुभम वर्मा,कोमल नागवंशी,शुभांगी झा,ऋतु कर्ण, पल्लवी,उल्लास भारती,सुमित श्री झा,शिवम झा शांडिल्य,मोहित पांडेय,शील,राजनाथ पण्डिय,सत्यम झा,और अमित झा सहित सभी कलाकारों ने मिलकर अपनी प्रतिभा के दम पर कथ्य को जीवन्त कर दिया। अपनी स्थापना के साल भर से भी कम की अवधि में ही रिबेल थिएटर की हनक नगर में महसूस होने लगी है। यह सम्पूर्ण मिथिला के लिए शुभ संकेत है। ऊर्जावान युवाओं की इस टोली ने लोगों में काफी उम्मीदें जगा दी है।