- बोहरी दास दईया
विश्व साहित्य में श्रीमद्भगवद्गीता का अद्वितीय स्थान है। गीता साक्षात भगवान के श्रीमुख से निकली परम् रहस्यमयी दिव्य वाणी है, कहा भी है-
हरि सम जग कछु वस्तु, प्रेम पन्थ सम पन्थ।
सद्गुरु सम सज्जन नहीं, गीता सम नहीं ग्रन्थ।।
वेद भगवान के निः श्वास हैं और गीता भगवान की वाणी है।निः श्वास तो स्वाभाविक होते हैं, पर गीता भगवान ने योग स्थित होकर कही है।अतः गीता वेदों से भी विशेष है।
भारतभूमि में उपदिष्ट भगवद्गीता का इतिहास हम भारतीयों सहित मनुष्य मात्र को ज्ञात होना चाहिए।स्वयं भगवान श्रीकृष्ण गीता के चौथे अध्याय के प्रथम श्लोक में गीता का इतिहास बताते हुए कहते हैं-
इमम विवस्वते योगं प्रोक्तवान अहम अव्ययम।
विवस्वान मनवे प्राह मनुरिक्षवाकवे ब्रवीत।।
अर्थात
मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था।फिर सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा।
सृष्टि के आरम्भ में भगवान ने सूर्य को ही कर्मयोग का वास्तविक अधिकारी जानकर उन्हें सर्वप्रथम गीता का उपदेश दिया।
सृष्टि में जो सर्वप्रथम उत्पन्न होता है, उसे ही उपदेश दिया जाता है।सृष्टि में सर्वप्रथम सूर्य की उत्पत्ति हुई, फिर सूर्य से समस्त लोक उत्पन्न हुए।सबको उत्पन्न करनेवाले सूर्य को सर्वप्रथम कर्मयोग गीता का उपदेश देने का अभिप्राय उनसे उत्पन्न सम्पूर्ण संसार को परम्परा से कर्मयोग सुलभ करा देना था।इस प्रकार गीता का प्रथम उपदेश भगवान श्रीकृष्ण ने सूर्य को दिया।
गीता का द्वितीय उपदेश सूर्य ने अपने पुत्र राजा मनु को दिया।
गीता का तृतीय उपदेश राजा मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु को दिया।
इस तरह परम्परा से प्राप्त इस कर्मयोग को राजर्षियों ने जाना परन्तु बहुत समय बीत जाने के कारण वह योग इस मनुष्य लोक में लुप्तप्रायः हो गया।
पुनः महाभारत काल मे आज से लगभग ५२०० वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डव वीर अर्जुन के माध्यम से विश्व के प्रत्येक मनुष्य को वही गीता-ज्ञान पुनः प्रसारित किया।यह गीता का चौथा उपदेश था।
भगवान ने सूर्य, मनु, इक्ष्वाकु आदि राजाओं का नाम लेकर यह बताया कि कल्प के आदि में गृहस्थों ने ही कर्मयोग की विद्या भगवद्गीता को जाना और गृहस्थ आश्रम में रहते हुए ही इन्होंने कामनाओं का नाश करके परमात्म तत्व को प्राप्त किया।स्वयं भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन भी गृहस्थ थे।इसलिए भगवान अर्जुन के माध्यम से मानो सम्पूर्ण गृहस्थों को सावधान(उपदेश) करते हैं कि तुमलोग अपने घर की विद्या ‘कर्मयोग’ का पालन करके घर मे रहते हुए ही परमात्मा को प्राप्त कर सकते हो,तुम्हें दूसरी जगह जाने की जरूरत नहीं है।
इस प्रकार हमने जाना कि मनुष्य मात्र के धर्मशास्त्र हमारी भगवद गीता कितनी पौराणिक किन्तु कितनी प्रासंगिक है।सूर्य आज भी हमारे समक्ष है और अनवरत गीता के कर्मयोग का आचरण कर रहे हैं।हम भी गीता शास्त्र को नित्य पढें, अपना जीवन सफल बनाएँ।महर्षि वेदव्यास जी ने कहा भी है-
गीता सुगीता कर्तव्या किम अन्य शास्त्र विस्तरे।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुख पद्मात विनिसृता।
(गीता का भलीभांति पठन पाठन करना चाहिए।अन्य ग्रन्थों का विस्तार करने से कोई लाभ नहीं।एक ही गीता में सब ग्रन्थसमाए हैं क्योंकि गीता तो साक्षात पद्मनाभ भगवान श्रीकृष्ण के मुख की दिव्य वाणी है।)