दिल्‍ली: आम चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार ने अयोध्‍या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है. सरकार ने अदालत में अर्ज़ी देते हुए कहा है कि वह ज़मीन के विवादित हिस्से को छोड़ कर बाकी ज़मीन रामजन्म भूमि न्यास को दे दें, ताकि राम मंदिर की य़ोजना पर काम किया जा सके.

विवादित ज़मीन के आस-पास की 67 एकड़ ज़मीन सरकार की है. जिसमें से 2.7 एकड़ ज़मीन पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने साल 2010 में फ़ैसला सुनाया था और केवल 0.313 एकड़ ज़मीन पर विवाद है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरी ज़मीन पर यथास्थिति बनाए रखने को कहा है. केंद्र सरकार ने कोर्ट में अर्जी दी है कि जिस ज़मीन पर विवाद नहीं है उसके मूल मालिकों को लौटा दी जाए.

आम चुनाव से ठीक पहले केंद्र का सुप्रीम कोर्ट जाना और अयोध्या केस पर नयी याचिका डालना, चुनाव से पहले इसे मोदी सरकार के बड़े दांव के रूप में देखा जा रहा है. सरकार ने कोर्ट में अर्जी देकर गैर विवादित जमीन पर यथास्थिति हटाने की मांग है. सरकार ने कोर्ट में कहा है कि वह गैर विवादित 67 एकड़ जमीन इसके मालिक राम जन्मभूमि न्यास को देना चाहती है. सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि केवल 0.313 एकड़ जमीन पर ही विवाद है. केंद्र ने कहा कि इस पर यथास्थिति रखने की जरूरत नहीं है.

1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या अधिग्रहण ऐक्ट के तहत विवादित स्थल और आसपास की जमीन का अधिग्रहण कर लिया था और पहले से जमीन विवाद को लेकर दाखिल तमाम याचिकाओं को खत्म कर दिया था. सरकार के इस ऐक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. तब सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फारुखी जजमेंट में 1994 में तमाम दावेदारी वाले सूट को बहाल कर दिया था और जमीन केंद्र सरकार के पास ही रखने को कहा था और निर्देश दिया था कि जिसके फेवर में अदालत का फैसला आता है, जमीन उसे दी जाएगी.

इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या में 2.77 एकड़ भूमि विवाद से संबंधित मामले में 14 अपीलें दायर की गई थीं. यह सभी अपील 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2:1 के बहुमत के फैसले के खिलाफ थे. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मई, 2011 को स्टे का ऑर्डर दिया था.

मोदी सरकार के इस याचिका के पर कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने सवाल किया, ’16 साल सोए रहने के बाद सरकार अचानक कैसे जाग गई, वह भी लोकसभा चुनाव से ठीक दो महीने पहले?” सरकार की नियति पर सवाल उठाते हुए सिंघवी ने अदालत के 2003 के उस निर्णय का हवाला दिया, जिसके तहत जबतक पूरे मामले में अंतिम निर्णय नहीं आ जाता, तबतक निर्विवादित भूमि सहित पूरी जमीन पर यथास्थिति बनी रहेगी. उन्होंने कहा, ‘सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय बिल्कुल स्पष्ट है, लेकिन चुनाव से पहले उस निर्णय में बदलाव लाने के लिए सरकार के कदम पर सवाल उठ रहा है.’

आपको बताते चले कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के जस्टिस डी. वी. शर्मा, जस्टिस एस. यू. खान और जस्टिस सुधीर अग्रवाल की बेंच ने बहुमत से दिए गए फैसले में एक हिस्स हिंदुओं को मंदिर के लिए, दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का फैसला सुनाया था. जिसके बाद फिर से ये मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया.

राम मंदिर को लेकर शिवसेना और विश्व हिंदू परिषद मोदी सरकार पर लागातार दबाओ बना रही है, ऐसे में सरकार का ये कदम चुनावी साल में रामबाण साबित हो सकता है.