-संतोष सिंह
संपादक, कशिश न्यूज़
सीबीआई में मचे घमासान की बिसात काफी पहले बिछ चुकी थी।
बस, सही समय का इंतजार किया जा रहा था। लेकिन,
आलोक वर्मा छह महीने में इतने मजबूत हो जाएंगे ये किसी ने नहीं सोचा था।
ये पूरी स्टोरी वर्मा और अस्थाना के साथ काम करने वाले एक ऐसे सूत्र से सामने आई है, जो दोनों की कार्यशैली पर 20 वर्षों से नजर रख रहे हैं ।
शुरुआत केन्द्रीय कैबिनेट सचिव से करते हैं- नाम प्रदीप कुमार सिन्हा। बिहार से हैं और अस्थाना भी नेहरहाट से पढ़े हैं। बिहार कैडर के सीनियर आईएएस अधिकारी के बेटे से अपनी बेटी की शादी की है । आलोक वर्मा और प्रदीप कुमार सिन्हा में पुराना रिश्ता रहा है। प्रदीप कुमार सिन्हा पर मोदी को बहुत भरोसा है। दो बार सेवा विस्तार भी मिल चुंका है। राकेश अस्थाना को निदेशक बनाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के रुख के बाद कहा ये जा रहा कि आलोक वर्मा का नाम प्रदीक कुमार सिन्हा ने सुझाया था। दोनों के बीच वर्षों पुराना रिश्ता रहा है। वैसे भी आलोक वर्मा की कभी कड़क छवि नहीं रही। इनकी पहचान सहज, सुलभ औऱ सत्ता के वफादार के रुप में होती थी। सरकार को भी ऐसे ही अधिकारी की जरुरत थी। सरकार वर्मा को निदेशक तो बना दी, लेकिन भरोसा राकेश अस्थाना पर कहीं ज्यादा था। इस वजह से दोनों के बीच खटास बढती ही चली गई। वर्मा कई बार अस्थाना की शिकायत लेकर पीएमओ गये, लेकिन कभी अस्थाना की शिकायत सुनी नहीं गयी।
इसी बीच गुजरात कैडर के ही सीनियर आईपीएस अधिकारी एकेशर्मा जो अमित शाह के काफी करीबी माने जाते हैं, इस खेल में इनकी एंट्री होती है क्योंकि राकेश अस्थाना का मोदी के सीधे किचेन तक प्रवेश था। इस वजह से अस्थाना कई मौके पर अमित शाह के आदेश को नजरअंदाज कर देते थे। इस वजह से अमित शाह भी अस्थाना के साथ उतना सहज महसूस नहीं करते थे। लेकिन, मोदी के चहेते होने के कारण कुछ कर भी नहीं सकते थे ।
वही एके शर्मा औऱ राजेश अस्थाना के बीच गुजरात से ही 36 का रिश्ता था। कई बार दोनों एक दूसरे को सार्वजनिक रुप से अपमानित कर चुके थे । जैसे ही मौका मिला एकेशर्मा आलोक वर्मा के साथ जुड़ गये और धीरे- धीरे राकेश अस्थाना के खिलाफ गोलबंदी शुरु हो गयी। फिर भी आलोक वर्मा किसी तरह से अपना कार्यकाल पूरा करके निकल जाना चाह रहे थे, लेकिन इसी बीच राकेश अस्थाना ने एक फर्जी बयान के सहारे आलोक वर्मा पर सीधा हमला बोल दिया। आलोक वर्मा इसकी शिकायत पीएमओ तक किए, लेेकिन किसी ने कोई नोटिस तक नहीं लिया ।
मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ था। ऐसे में आलोक वर्मा को समझ में आ गया कि पलटवार नहीं किये तो फिर रिटायरमेंट के बाद भी मुश्किलें बढ सकती है।.. और फिर शुरु हुआ अॉपरेशन अस्थाना। जिस दौरान अस्थाना और उनके साथ जुड़े सीबीआई के एक दर्जन से अधिक अधिकारी और एक रॉ के अधिकारी जो अस्थाना का बैचमेट हैं उसके खिलाफ भ्रष्टाचार के पर्याप्त सबूत मिल गये ।
सीबीआई के दफ्तर में रहते हुए भी अस्थाना को इसकी भनक तक नहीं लगी कि उनके खिलाफ इतना बड़ा अॉपरेशन चल रहा है। इतने गुप्त तरीके से ये सब चल रहा था कि जब तक पता चलता तब तक अनुसंधान लगभग पूरी कर ली गयी थी। जैसे ही इसकी भनक लगी, अचानक एक खबर लुटियन जोन में काफी तेजी से फैलायी गयी कि आलोक वर्मा राफेल वाले में जाते-जाते जांच का आदेश कर देंगे। इसी बीच अस्थाना के खिलाफ कारवाई की सूचना पीएमओ पहुंची। खबर फैलाने वाले की बात में दम दिखने लगा। फिर क्या था, अस्थाना ने एक बार फिर साहब के लिए अपनी नौकरी तक दांव पर लगाने की बात कह बड़ा दांव खेल दिया, क्योंकि वर्मा औऱ शर्मा को हटना इतना आसान नहीं था।.. औऱ इन दोनों के हटे बगैर अस्थाना की खैर नहीं थी। फिर क्या था- वर्मा औऱ शर्मा के जितने भी करीबी अधिकारी थे उनको रातोंरात हटा दिया गया। देखिए आगे आगे होता है क्या। लेकिन, वर्मा भी कम पहुंचे हुए खिलाड़ी नहीं हैं। नौकरी का अधिकांश समय दिल्ली में गुजरा है औऱ नेटवर्क बनाने वालों में इनकी गिनती रही है ।