क्यों की जाती है भगवान शिव के लिंग की पूजा-

वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है. यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है. मन, बुद्धि, पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और वायु पुराण के अनुसार
प्रलयकाल में समस्त सृष्टिजिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है उसे लिंग कहते हैं. इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है.।

पौराणिक कथा –

एक बार भगवान शिव नग्न अवस्था में वन में विचरण कर रहे थे विचरण करते करते उन्हें ब्राह्मण स्त्रियाँ नग्न अवस्था में देखकर मोहित हो गई ।
उन स्त्रियों के पति ब्राह्मणों ने जब देखा तो क्रोध वश बोले हे शंकर हम ब्राह्मण तुम्हें श्राप देते हैं कि तुम्हारा लिंग यहीं कट कर गिर जाए ब्राह्मणों के श्राप से शिवजी का लिंग जब कटकर धरती पर गिर पड़ा तो भयंकर प्रलय होने लगी धरती थर-थर कांपने लगी ब्रह्मांड कांपने लगा तो ब्रह्मदेव प्रकट होकर क्षमा याचना करने लगे तब शिव ने बताया इस लिंग को धारण करने की शक्ति अगर किसी में है तो वह पार्वती है तब ब्रह्मदेव ने माता पार्वती से प्रार्थना की और सृष्टि के कल्याण हेतु लिंग को योनि में मां पार्वती ने धारण किया जिसके कारण सृष्टि का विनाश होने से बच गया और ब्रह्मदेव ने इस लिंग को निराकार रूप में पूजने का प्रावधान बताया और कहा की इस लिंग की पूजा करने मात्र से हम सभी देवी देवता तृप्त हो जायेंगे लेकिन हम सबकी पूजा कर अगर शिवलिंग पूजा नही की तो हम तृप्त नही होंगे रूप अनेक धर्म ग्रंथों में पुराणों में शिव के लिंग की पूजा क्यों होती है इसके अनेक कारण बताए जाते लेकिन वह सारे कारण कहीं ना कहीं मैच होते हैं लेकिन यह कथा सर्वथा प्रचलित है और इसी कथा को महत्व देते हैं और भगवान शिव बहुत अच्छे विज्ञान की खोज करके हमें दिखाते आए हैं अनेक पुराणों में उनके द्वारा किए हुए कार्यों का मंथन किया जाता है तो उसमें निश्चित ही कोई वैज्ञानिक कारण निकलता है।

नोट- शिव की महिमा समझ कर हमें शिवलिंग का पूजन अवश्य करना चाहिए इससे अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है सोमवार के दिन तांबे के पात्र से शिवजी पर जल चढ़ाने से सारे कष्टों की निवृत्ति होती।