क़ायम साबरी
कुशवाहा 10 दिनों से अमित शाह से मिलने का समय मांग रहे हैं, लेकिन मुलाकात नहीं हो पा रही है.
नेताओं-कार्यकर्ताओं से मिलने में बेहद उदार माने जाने वाले अमित शाह से कुशवाहा की मुलाकात नहीं हो पाने के राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं.
पटना: राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा अपनी ही पार्टी में अकेले होते जा रहे है. कुछ दिनों से उन्होंने राजग और महागठबंधन पर दबाओ बनाने कि राजनीति शुरू कि थी. भाजपा-जदयू के सीट बटवारे के बाद कुशवाहा को मात्र दो सीट दिए जाने के बाद कुशवाहा नाराज चल रहे थे. वही दूसरी ओर एक टीवी प्रोग्राम में नीतीश कुमार दुवारा नीच शब्द का इस्तेमाल किये जाने के बाद (जैसा कि कुशवाहा बोल रहे है) नीतीश-कुशवाहा के बीच तल्खी खुल कर सामने आ गयी.
नीतीश कुमार से इस टकराव में कुशवाहा को राजग के घट दलों का साथ तक नहीं मिला. लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष चिराग पासवान तथा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता व बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने तो नीतीश कुमार द्वारा ऐसी बात कहने के आरोप को खारिज कर दिया है.
इधर, इस मामले में अपनी शिकायत लेकर भाजपा सुप्रीमो अमित शाह से मिलने गए कुशवाहा को मुलाकात का समय तक नहीं मिला. कुशवाहा राजग के विरोधी खेमे के नेता शरद यादव से मिलकर पटना लौट आया हूँ. कुशवाहा ने खुद कहा कि अमित शाह से मिलने में वे नाकामयाब रहे.
ख़ैर वजह कुछ भी हो, कुशवाहा 10 दिनों से अमित शाह से मिलने का समय मांग रहे हैं, लेकिन मुलाकात नहीं हो पा रही है. नेताओं-कार्यकर्ताओं से मिलने में बेहद उदार माने जाने वाले अमित शाह से कुशवाहा की मुलाकात नहीं हो पाने के राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं. रविवार की रात भी दोनों की मुलाकात तय थी, पर अमित शाह देर रात तक पार्टी की बैठक में व्यस्त रहे. लिहाजा मुलाकात नहीं हो सकी.
रालोसपा में कुशवाहा का इतिहास देखें तो कुशवाहा शुरू से विश्वासी नहीं रहे है. रालोसपा को बनाने में जितना योगदान कुशवाहा का रहा उससे कही कम योगदान अरुण कुमार का भी नहीं था. मगर लोकसभा चुनाव में जिस तरह रालोसपा को सफलता मिली और कुशवाहा को मंत्री पद तभी से उनके तेवर बदल गए. कुशवाहा पार्टी के अंदर सुप्रीमो कि भूमिका में आ गए. अपने साथी अरुण कुमार को उन्होंने नजर अंदाज करना शुरू कर दिया. तब नीव पारी दो गुट कि एक था कुशवाहा गुट तो दूसरा अरुण कुमार का गुट. विधानसभा चुनाव के सीट बटवारे में भी कुशवाहा गुट कि बल्ले बल्ले रही और अरुण कुमार गुट को रालोसपा को अपना साबित करने के लिए कोर्ट का रुख करना पड़ा.
आपको बताते चले कि रालोसपा तीन सांसदों के साथ राजग में गया था. एक सांसद अरुण कुमार जो अधिकार के लड़ाई के लिए कोर्ट में है. दूसरे सांसद आरके शर्मा राजग छोड़ना नहीं चाहते हैं. संसदीय क्षेत्र की सामाजिक संरचना उनकी मजबूरी है. उनका क्षेत्र सीतामढ़ी है. यह राजद की परंपरागत सीट रही है.
विधानसभा की बात करें तो पार्टी के दो विधायक हैं और दोनों के रास्ते अलग होते दिख रहे हैं. दोनों ही नीतीश कुमार के संपर्क में बताए जा रहे हैं. पार्टी के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव रामबिहारी सिंह भी राजग के पक्ष में हैं. ले देकर पूर्व सांसद नागमणि और दसई चौधरी को कुशवाहा के साथ कहा जा सकता है. मगर इन दोनों का बिहार में राजनितिक प्रभुत्व समाप्त हो चुका है.
रालोसपा के इस राजनितिक गिरावट में कही न कही कुशवाहा कि महत्वकांक्षा भी शामिल है. नीतीश कुमार के रहते उनके बिरादरी में किसी और का मुख्यमंत्री के लिए नाम आये ये कुमार को राश नहीं आता है. समुंद्र में बड़ी मछली छोटे मछली को खा जाती है. रालोसपा के साथ कुछ ऐसा ही हुआ.
कुल मिलाकर कह सकते हैं कि कुशवाहा का राजग में बने रहना अब दूभर हो गया है. वही भाजपा ने राजनितिक मर्यादा का ख्याल रखते हुए इसारो में कुशवाहा को सन्देश दे दिया है.अब देखना ये बाकि है कि कब तक कुशवाहा इस मैसेज का जवाब देती है.