समीर मिश्रा
उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में सरकार बनने के कुछ समय बाद ही करीब बीस हजार राजनीतिक मुकदमों को वापस लेने का फैसला किया था जिसके तहत उनके खिलाफ भी कई मुकदमों को वापस लेने की कार्रवाई शुरू हो गई. लेकिन गंभीर अपराधों में दर्ज कुछ मुकदमे अभी भी उनका पीछा नहीं छोड़ रहे हैं.
गोरखपुर से लगे महराजगंज जिले की एक अदालत ने योगी को 19 साल पहले हुए एक दंगे के मामले में नोटिस भेजा है. इस घटना में समाजवादी पार्टी की नेता रही तलत अजीज के सरकारी सुरक्षा गार्ड सत्यप्रकाश यादव की गोली लगने से तत्काल मौत हो गई थी.
यूं तो महराजगंज की ही सीजेएम कोर्ट ने इसी साल मार्च में साक्ष्यों के अभाव में इस मुकदमे को खारिज कर दिया था लेकिन याचिकाकर्ता तलत अजीज ने निचली अदालत के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी जिसके बाद हाईकोर्ट ने मुकदमे को दोबारा शुरू करने का निर्देश दिया.
अदालत ने योगी आदित्यनाथ और कुछ अन्य लोगों को नोटिस भेजा है और एक हफ्ते के भीतर नोटिस का जवाब देने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 27 अक्टूबर को होगी.
बताया जा रहा है कि साल 1999 में महराजगंज के पचरुखिया में कब्रिस्तान की जमीन को लेकर हुए विवाद में ये केस दर्ज हुआ था. इस मामले में तलत अजीज ने योगी और उनके साथियों के खिलाफ 302, 307 समेत आईपीसी की कई धाराओं में एफआईआर दर्ज कराई थी जबकि बाद में महराजगंज कोतवाली के तत्कालीन एसओ बीके श्रीवास्तव ने भी योगी और 21 अन्य लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था.
इस मामले में तीसरी एफआईआर तत्कालीन सांसद और मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ की ओर से तलत अजीज और उनके साथियों के खिलाफ दर्ज कराई गई थी जिसमें तलत अजीज और उनके साथियों पर योगी के काफिले पर हमला करने का आरोप लगाया गया था. कल्याण सिंह के नेतृत्व में तत्कालीन बीजेपी सरकार ने मामले की जांच सीबीसीआईडी से कराई थी लेकिन उसने साक्ष्यों के अभाव में अंतिम रिपोर्ट लगाकर मामले को बंद कर दिया था.
मामले की याचिकाकर्ता और घटना की प्रत्यक्षदर्शी रहीं तलत अजीज बताती हैं, “समाजवादी पार्टी के लोग सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और जेल भरो आंदोलन कर रहे थे. तभी कुछ लोगों ने पचरुखिया गांव चलने की अपील की, जहां कब्रिस्तान को लेकर विवाद हुआ था.”
बताया जाता है कि वहीं योगी आदित्यनाथ भी अपने तमाम समर्थकों के साथ पहुंच गए और तभी कुछ लोगों ने फायरिंग शुरू कर दी. तलत अजीज का कहना है कि फायरिंग काफी देर तक चलती रही और लोग दहशत के मारे इधर-उधर जान बचाकर भागने लगे. इसी दौरान तलत अजीज के सुरक्षा गार्ड सत्य प्रकाश यादव को गोली लगने से उसकी तत्काल मौत हो गई.
यह मामला करीब 19 साल तक महराजगंज की सीजेएम कोर्ट में चला और इस साल 13 मार्च को सीजेएम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. तलत अजीज ने इस फैसले को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी और फिर उच्च न्यायालय ने सीजेएम कोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए मामले की महराजगंज के जिला एवं सत्र न्यायालय में सुनवाई के निर्देश दिए. योगी आदित्यनाथ और कुछ अन्य लोगों को इसी मामले में नोटिस भेजा गया है.
आदित्यनाथ गोरखपुर में भी दंगे के एक मामले में अभियुक्त हैं. 2007 में गोरखपुर में हुए दंगों के मामले में प्रत्यक्षदर्शी रहे परवेज परवाज ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. इन दंगों में कई लोग मारे गए थे.
परवेज परवाज और असद हयात ने तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ पर 27 जनवरी 2007 को गोरखपुर रेलवे स्टेशन गेट के सामने कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने और उसके कारण गोरखपुर व आस-पास के जिलों में बड़े पैमाने पर हिंसा होने का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका में अदालत से भड़काऊ भाषण और उसके कारण हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं की स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया था.
बाद में राज्य में बीजेपी की सरकार बनने और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रमुख सचिव (गृह) ने मई 2017 में योगी आदित्यनाथ पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं दी.
हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ परवेज परवाज और असद हयात ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की. सुप्रीम कोर्ट ने 20 अगस्त को योगी आदित्यनाथ सरकार से सवाल किया कि इस मामले में उन पर मुकदमा क्यों नहीं चलाया जाना चाहिए. अदालत ने सरकार को चार हफ्तों के भीतर जवाब देने को कहा है.
वहीं, योगी आदित्यनाथ ने खुद के खिलाफ जिन मुकदमों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कराई, उन्हें लेकर भी काफी विवाद हुआ है. विरोधी दल तो लगातार कह रहे हैं कि दामन पर इस तरह का दाग आने के बाद योगी आदित्यनाथ को खुद ही इस्तीफा दे देना चाहिए लेकिन ऐसा होता अभी दिख नहीं रहा है.