पाकिस्तान की जनता ने आम चुनाव में चरमपंथियों को सीख़ देने में कोई कसर नहीं छोड़ी हाफिज सईद की अल्लाह-ओ-अकबर पार्टी के सारे उम्मीदवार चुनाव हार गए।कट्टरपंथी और प्रतिबंधित समूहों से जुड़े सैकड़ों व्यक्ति चुनाव में प्रतिस्पर्धा कर रहे थे लेकिन उनमें से कोई भी राष्ट्रीय या प्रांतीय असेंबली में सीट जीतने में कामयाब नहीं हो सका सईद के पुत्र हाफिज तलहा सईद ने जमात-उद दावा नेता के घर शहर सरगोधा (लगभग लाहौर से 200 किलोमीटर दूर) से एनए -91 सीट से चुनाव लड़ा था और सईद के दामाद खालिद वालीद पीपी -177 में उम्मीदवार थे मगर इन दोनों में से किसी ने जीत का मुँह नहीं देखा.इन चुनाव नतीजों को देखने से पता चलता है कि अल्लाह-ओ-अकबर पार्टी के उम्मीदवारों को कुल मिलाकर महज 1,71,441 वोट मिले जबकि देश में 10 करोड़ से ज्यादा पंजीकृत मतदाता हैं और चुनाव में 50 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ यानि पांच करोड़ से ज्यादा वोट डाले गए।ऐसे में नफरत का खेलने वाले हाफीफ सईद को जनता ने कैसे नाकारा है इसको साफ़ देखा जा सकता है.
वही दूसरी ओर इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ को पाकिस्तानी जनता का पूरा साथ मिला,इस पार्टी ने 270 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 116 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी।एक और चरमपंथी पार्टी तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) ने नेशनल एसेंबली की 150 और प्रांतीय सभाओं की 100 से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। देखा जाए तो किसी भी चरमपंथियों को पाकिस्तान का साथ नहीं मिला और हार का मुँह देखना पड़ा.
चरमपंथियों के सीधे चुनाव में सक्रिय होने से पाकिस्तान को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया, मानवाधिकार समूहों एवं नेताओं की आलोचना का सामना करना पड़ा था.मगर वहा की जनता ने अपने वोट का उचित प्रयोग करते हुए चरमपंथियों को सबक सीखाने में गलती नहीं की.और पाकिस्तान में एक स्वस्थ लोकतंत्र स्थापित करने की कोशिश की है.
हाफिज सईद की अल्लाह-ओ-अकबर पार्टी ज़ीरो पर ऑल आउट
