श्लोक 
उत्तरे सर्वपात्राणि उत्तरे सर्व देवता ।
उत्तरेपाम्प्रणयनम् किम् अर्थम् ब्रह्म दक्षिणे ।।

सभी विद्वानों के लिए जानने योग्य बात है ।

अर्थ- इस श्लोक का अर्थ है उत्तर में सारे पात्रों को स्थापित करते हैं यज्ञ में और उत्तर में ही सारे देवी देवताओं का आवाहन होता है पूजन होता है और इस श्लोक में एक प्रश्न छुपा हुआ है वह प्रश्न यह है कि ब्रह्मा जी को दक्षिण दिशा में क्यों स्थापित करते हैं यज्ञ में तो दूसरा श्लोक इसका अर्थ बताता है देखिए ।

श्लोक 
यमोवैवस्वतोराजा वस्ते दक्षिणाम् दिशी ।।
तस्यसंरक्षरणार्थाय ब्रह्मतिष्ठति दक्षिणे ।।

अर्थ= यम यानी यमराज
का स्थान यमपुरी किधर है दक्षिण में और सभी भूत प्रेत पिशाच इत्यादि आसुरी शक्तियां जो यज्ञ में बाधक होती हैं वह सब दक्षिण दिशा में वास करती हैं तस्य उसके संरक्षण अर्थ आया यानी रक्षा करने के लिए भूत प्रेत पिशाच आदि से रक्षा करने के लिए ही ब्रह्मा जी को दक्षिण में स्थान देते हैं या दिया गया है इसीलिए हमेशा यज्ञ में ब्रह्मा जी का स्थान दक्षिण में रहता है जिससे हमारे यज्ञ में कोई भी किसी प्रकार का विघ्न ना डाल सकें ।

 

ज्योतिषाचार्य पं.अतुल त्रिपाठी