अभिषेक कुमार

चुनावी मौसम में नेताओं की बदजुबानी और अली-बली की चर्चा अब आम बात होकर रह गई है। नेताओं के फिसलते जुबान पर लगाम लगाई जा सकती है, लेकिन अगर ये रणनीति के तहत हो जाए, तो जनता को अपने विवेक पर ही भरोसा जताना चाहिए। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जो हाय-तौबा मचे। देश के आम चुनावों से लेकर विधानसभा चुनावों तक जातिगत एवं धार्मिकता की ऐसी खिचड़ी पकाई जाती है, जिससे चुनाव की हवा का रूख अपनी ओर किया जा सके। लोकसभा चुनाव 2019 में भी यह खेल शुरू हो चुका है, मेरे इस रिपोर्ट लिखने और चुनाव खत्म होने में एक माह से अधिक का समय बचा है, तो अभी ऐस और कई शो के लिए जनता अपनी तैयारी कर ले वही अच्छा साबित होगा। बात आजम खान की बदजुबानी वाले बयान से शुरू की जाए या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मेनका गांधी, मायावती के रास्ते गुजरते हुए ताजातरीन नवजोत सिंह सिद्धु के रणनीति वाले धार्मिक बयानों पर खत्म की जाए। ऐसा नहीं है कि ऐसे बयान पार्टी लाइन के होते हैं या नेता भाषण देने के दौरान जोश-खरोश में ऐसा बोल जाए। लेकिन अगर इन बयानों की ख्याति देर तक सुनाई देती है तो कोई भी पार्टी मूक रूप से उस लाइन पर चलने को तैयार हो जाती है। भारत की भौगोलिक संस्कृति की यह विविधता है कि यहां विभिन्न भाषाई, जाति एवं धर्मो का निवास स्थान है, परंतु आज राजनीति में यह विविधता सबसे मजबूत कड़ी के रूप में तब्दील हो चुका है। नेतागण इसी सांस्कृतिक बहुलता को अपना हथियार बनाकर जाति एवं धार्मिक के आधार पर भड़काने वाला बयान देकर सामाजिक समरसता में जहर घोलने का काम करते हैं।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मेरठ में जब कहा, कांग्रेस, सपा और बसपा के पास अली हैं तो हमारे पास बजरंगबली है, तो उन्हें पता है कि मेरठ में हिंदुओं की कुल सख्या 63.40 प्रतिशत है और उनके द्वारा की गई टिप्पणी से क्या संदेश जाएगा। वहीं बसपा प्रमुख मायावती भी जब देवबंद और सहारनपुर में मुसलमानों के वोट न बंटने देने का सदेश दे रही थी, तो वो जानती थी कि देवबंद में 39.77 प्रतिशत और सहारनपुर 41.95 प्रतिशत मुस्लिम वोटों में बिखराव हाने से उन्हें क्या नुकसान हो सकता है। वहीं मेनका गांधी ने तो सुल्तानपुर में सधी लहजे में धमकी ही दे दी। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि सुल्तानपुर के 17.13 प्रतिशत मुस्लिम वोट मेनका गांधी को नहीं पड़ते हैं तो क्या सांसद बनने पर वह मुस्लिम इलाकों की सांसद नहीं कहीं जायेगी। लाजमी है कि वह संपूर्ण सुल्तानपुर की सांसद कही जायेंगी। तो ऐसी स्थिति में उनके इन बयानों को हिंदु मतों के ध्रुवीकरण की राजनीति से प्रेरित देखा जायेगा। आज कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धु बिहार के कटिहार में इस बड़बोले बयानों की सीरीज में जुड़ चुके हैं। जहां उन्होंने धर्म के आधार पर मुस्लिम मतदाताओं से कहा कि, आप 64 प्रतिशत जनसंख्या के साथ इस क्षेत्र में बहुसंख्यक के रूप में हैं यदि तुमने एकजुट होकर वोट डाला तो सब उलट जायेगा और मोदी सुलट जायेगा।
इन सारे बयानों को धार्मिक बयानों की राजनीति का स्वरूप समझा जा सकता है, लेकिन सपा नेता आजम खान का रामपुर में दिया जाने वाला बयान ओछी राजनीति से अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता है। आजम खान की जुबान इतनी फिसली की उन्हें मर्यादा के पूर्णविराम का अहसास तक नहीं रहा। उन्होंने एक समय में अपने ही पार्टी की नेत्री एवं रामपुर से दो बार की सांसद रहने वाली जया प्रदा पर अभद्र टिप्पणी की। रामपुर मुस्लिम बहुल इलाका है, यहां 50.57 प्रतिशत मुस्लिमों की जनसंख्या है। रामपुर आजम खान का किला माना जाता हैं। आजम अपने किले से ऐसे ही टिप्पणियों के लिए देशभर में प्रसिद्ध हैं।

हालांकि ऐसे बयानों के बाद नेताओं पर चुनाव आयोग ने लगाम लगाया है। योगी आदित्यनाथ और आजम खान को 72 घंटे के लिए और मायावती और मेनका गांधी पर 48 घंटे के लिए चुनाव प्रचार पर विराम लगा दिया गया है। आजकल में हो सकता है चुनाव आयोग नवजोत सिंह सिद्धु पर भी कार्रवाई करे। लेकिन इन धार्मिक बयानों का आसरा लेकर और आपत्तिजनक अभद्रबयानों के सहारे सत्ता में आने का सपना देखने वाले नेताओं पर सही और सटीक कार्रवाई जनता जनार्दन के हाथों में है। वे ही इन नेताओं पर सही कार्रवाई कर इनको जवाब दे सकती है। वैसे जनता का जवाब जानने के लिए 23 मई का इंतजार करना होगा।