साक्षात्कार : हर रोज की तरह कल भी आधी रात बीतने के बाद मैंने सोने की कोशिश की. आदतन मैं बिस्तर पर जाने के बाद देश-दुनिया की खबरों से रूबरू होता हूँ. खबरों में नागरिकता बिल के कारण जल रहे देश को देख कर गहरी चिंता में था. उत्तर प्रदेश के सिपाहियों ने जिस कदर वहां के नागरिकों पर बल पूर्वक अत्याचार किया था वो दिल दहला देने वाला था.
सत्ता और प्रशासन का अपनी आवाज़ उठाने वाली जनता पर ये अत्याचार रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना थी. मैं इन्हीं बातों को सोचते-सोचते सो गया.
जब मैं नींद की आगोश में बेखबर था, मैंने अपने दरवाजे पर किसी के दस्तक की आहट सुनी. उस आहट ने मेरी आँखें खोल दी. मैंने सपने में अपने सामने धोती में लिपटे, हाथों में लाठी लिए और अपने मधुर आवाज में मुझे पुकारते गांधीजी का साक्षात्कार किया. मैंने देखते ही पहचान लिया और पूछा बापू, ‘आप, इस नाचीज़ के घर!’ बापू ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा कुछ पल तुम्हारे साथ बैठूं ? मैंने कहा, ‘बापू आप ऐसा क्यूं कहते हैं, मैं भाग्यशाली हूं जो आप मेरे यहां आए, आइए, इस बहाने आपसे दो चार बात करने का मौका मिलेगा.’
मैंने तुरंत ही बापू को अपने हाथों का सहारा दे कर हॉल में बिठाया. बापू के चेहरे पर उदासी के भाव थे, उनकी आँखों में परेशानी साफ-साफ झलक रही थी. मैंने देर न करते हुए तुरंत पूछा, ‘बापू आप इतने तनाव में क्यों लग रहे हैं, सब ठीक है ना ?’
बापू ने अपनी धीमी आवाज में अनमने ढंग से सब ठीक होने की बात कही, लेकिन उनकी आँखों से बहते आंसू यह साफ कह रहे थे कि बापू अंदर ही अंदर घुट रहे थे. मैंने डरते-डरते बापू के हाथों को सपर्श किया. बापू ने खुद को सँभालते हुए पूछा, ‘मिया क़ायम देश में सब ठीक है ?‘
मैं बापू के मुंह से ‘मियां कायम’ सुन कर हैरान था. मैंने बापू से कहा, ‘सब ठीक है बापू’. बापू मुस्कराये और कहा क़ायम से मियां कायम हो गए और कहते हो ‘सब ठीक है’. बापू के इस वाक्य ने मुझे झकजोर दिया. मैं चुपचाप खड़ा हो कर बापू को सुनने लगा.
बापू ने पूछा, क्या हो रहा देश में, कहां खो गया देश का अमन चैन? मेरे पास बापू के सवाल का जवाब ना था, हालांकि जब तक कुछ कहता उससे पहले ही बापू ने गुस्से भरे लहजे में कहा, ‘मियां क़ायम, मैं कुछ पूछ रहा हूँ ?’
मेरे पास जवाब कई थे मगर बापू से किन-किन का बयान करता, इसलिए मैंने बस इतना कहा कि बापू आप बेहतर जानते हैं.
बापू ने मेरी ओर, मेरी आँखों में विश्वास के साथ देखकर कहा, ‘ मियां कायम हिंदुस्तानी हो तुम, ये मादरे वतन तुम्हारा है. मैंने न चाहते हुए बापू से कहा, ‘बापू अब सर्टिफिकेट माँगा जा रहा है. देश के हुक़्मराह हमें कपड़े से पहचान रहे हैं. बापू इन हुक़्मराह से तो बेहतर तो फिरंगी थे जो हमें कपड़े से नहीं मुल्क़ से पहचानते थे. तब हम हिन्दू और मुस्लिम कम, हिंदुस्तानी ज्यादा थे.
तब आप जैसे रहनुमा थे जो हम भारतीयों के अंदर आपसी प्रेम भावना जागते थे, अब तो देश में बापू आपके हत्यारों का राज है. अब सावरकर और गोडसे के पुजारी भगवा रंग में घूम रहे है. उनका बस चले तो देश के सभी दरख्तों का रंग भी भगवा कर दे. बापू देश टूट रहा, बापू देश जल रहा, बापू देश………………. बोलते बोलते में रो पड़ा’.
बापू ने अपनी गोद में लेते हुआ कहा, मियां ये देश जितना उनका है, उतना तुम्हारा भी है, और उतना ही मेरा भी है. क्या भूल गए मेरे सत्याग्रह को ?
मैंने कहा, ‘जी नहीं बापू. आप के अहिंसा को ही तो पकड़ा हूं बापू, मगर अब अपने ही फिरंगियों की तरह पेश आ रहे है. आंदोलनों को बल पूवर्क कुचला जा रहा है. बापू आप के सामने तो फिरंगी दुश्मन थे, मेरे सामने तो मेरे भारतीय भाई मैं कैसे लड़ूं इन सब से.’
मेरी बातों को सुन कर बापू मौन हो गए, कुछ देर सोचने के बाद बापू ने कहा, ‘मियां कायम, याद रखना मेरी एक बात, देश के दुश्मन वो हैं जो देश के भाईचारे, मजहबी एकता को तोड़ने की कोशिश करता है. जो देश की संस्कृति के साथ खिलवाड़ करें, देश में अशांति फैलाये. देश के अमन, चैन को मिटाने की कोशिश करे. मियां अब इन सब की बागडौर तुम युवाओं पर ही है. सिर्फ़ जामिया, जेएनयू, बीएचयू से नहीं होगा देश के अमन-चैन की ख़ातिर पुरे देश में सत्याग्रह करना पड़ेगा. और इसके लिए युवाओं को जगाना होगा. मैंने आज़ाद भारत में लोकतंत्र की नींव रखी और वो नींव इतनी खोख़ली नहीं जो अच्छे दिन का झूठा वादा करके मेरे देशवासियों को ठग ले’. नागरिकता के नाम पर आपस में लड़ जाए. मियां माँ के आँचल में शरण लेने के बाद कभी देखा है माँ बच्चे को कभी मारती है या खुद से अलग करती है, जाकर पूछो उस हुक़ुमराह से जो भारत माता की जयकार तो लगाता है और फिर माँ के आँचल से बेटे को अलग करने की राजनीति करता है.
‘मियां चलते-चलते एक बात कह देता हूँ, मैंने गोडसे को माफ़ किया क्योंकि वो सिर्फ़ मेरा हत्यारा था, पर देश की हुक़ूमत को अपनी लेखनी से बता देना मैं देश के हत्यारों को कभी माफ़ नहीं करूँगा.’
मैं चुपचाप खड़ा रहा, मैंने बापू की आँखों में एक ओर सत्याग्रह, एक ओर आन्दोलन, एक ओर स्वतंत्रता संघर्ष देखा. देखते-देखते बापू तेज रोशनी में कहीं खो गए. बापू के ओझल होते ही घरबराहट में मेरी नींद खुली. आंसुओं से मेरी आँखें तर थे. जेहन में बापू के एक-एक शब्द गूंज रहे थे. मन विचलित हो उठा था, कई सवाल मेरे सीने में ही दबे रह गए जिसे में बापू से पूछना चाहता था. खैर बापू से अगली मुलाक़ात में उन सवालों को पूछ लूंगा.
-क़ायम साबरी