बोहरी दास दईया

पर्यावरण से आशय हमारे चारों ओर व्याप्त प्राकृतिक घटकों के उस आवरण से है जिनसे हम सब पूर्णतः ढके हुए हैं।यह पर्यावरणीय घटक प्रत्येक दृष्टि से हमारे लिए लाभकारी एवं हितकारी है।
“माता भूमि पुत्रोहम पृथिव्या” अर्थात यह धरती मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूँ। इस वेद वाक्य को हमें जीवन मे आचरित करना होगा तभी हम अपने पर्यावरण को बचा सकेंगे। बढ़ता तापमान, ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण सहित समग्र स्वास्थ्य समस्याओं का भी मूल कारण तो मानव द्वारा प्रकृति के साथ की की गई अनपेक्षित छेड़छाड़ ही है जिससे यह प्रकृति कुपित होकर कई प्राकतिक आपदाओं के रूप में मानवीय जनजीवन को तबाह करती है। मानव मात्र के लिए उपयोगी गीता-ग्रन्थ में तो कई जगह पर्यावरण का महत्व बताया गया है।
अन्नाद्भावन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नासम्भव।
यज्ञात भवति परजनयो यज्ञ कर्म समुद्भव।।
अर्थात
सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वर्षा से होती है, वर्षा यज्ञ से होती है और यज्ञ विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है।

गीता का यह श्लोक स्पष्ट करता है कि हमारे विहित कर्म माने उचित एवं संतुलित कार्य करने से ही यज्ञ सम्पन्न होगा, उस यज्ञ के प्रभाव से वर्षा होगी, वर्षा से धरती पर विपुल मात्रा में अनाज पैदा होगा और इस अनाज से ही हम सब मनुष्यो सहित अन्यान्य प्राणियों का जीवन सम्भव होगा।
गीताकार भगवान कृष्ण ने कितनी ऊंची बात कह दी पर्यावरण को लेकर, आप और हम कल्पना कर सकते हैं।कृष्ण ने हमें निर्देश देते हुए गीता के इस दिव्य श्लोक में यज्ञ करने की आज्ञा दी है।आज तो विज्ञान भी यज्ञ की भूरि भूरि प्रशंसा करते नहीं थकता।यज्ञ से समग्र वायुमंडल शुद्ध होकर आकाशस्थ सूक्ष्म शक्तियों को आकृष्ट करके वर्षा के अस्तित्व को सम्भव बना देता है। अतः पर्यावरण को बचाने के लिए हमें गीता के मार्ग पर चलना होगा।भगवान ने पीपल के वृक्ष को अपनी विभूति बताया है।

अश्वत्थ सर्ववृक्षाणां… मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूँ… हमारी भारतीय संस्कृति में आज भी पीपल की देव मानकर पूजा की जाती है।पीपल का वृक्ष 24 घण्टे ऑक्सीजन देता है।हमें चाहिए कि वर्ष में एक पीपल तो हम अवश्य लगाएं। कृष्ण ने तो पहाड़ों की महिमा भी बता दी, कहते हैं-
स्थावराणाम हिमालयः…. स्थिर रहने वालों में हिमालय पहाड़ हूँ… भगवान की बात बड़ी मार्मिक है । पहाड़ो को संरक्षित रखने के उद्देश्य से हिमालय रूप में सभी पहाड़ों को अपनी विभूति बता दिया। गीता में समुद्र को भी भगवान ने अपना रूप बताते हुए कहा है-
सरसामस्मि सागरः…. जलाशयों में समुद्र हूँ। पर्यावरण में समुद्र का भी अहम योगदान है।इसलिए बन्धुओं समुद्र को भी प्रदूषित न होने दें।सूर्य की गर्मी से इसी समुद्र का जल वाष्प बनकर बादल बनता है और यही बादल बरसता है।यदि समुद्र प्रदूषित होंगे तो वर्षा जल भी प्रदूषित होगा न।देखो कितनी ऊंची बात कह दी हमारे भगवान ने।

पशुओं और पक्षियों को भी हमारे भगवान ने अपना स्वरूप बता दिया।कहते हैं-मृगानां च मृगेन्द्रोहम(पशुओं में मृगराज सिंह हूँ)
वैनतेय च पक्षिणाम(पक्षियों में मैं गरुड़ हूँ)
पर्यारण को शुद्ध रखने में गरुड़ सहित अन्यान्य पक्षियों के महत्व से हर कोई परिचित हैं।गिद्ध मरे हुए जानवरों का भक्षण करके हमारे वातावरण को शुद्ध बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
यूँ करें पर्यावरण का रक्षण-
अपने भारत की जनसंख्या लगभग 130 करोड़ हैं, प्रत्येक भारतीय अपने जन्मदिन पर यदि एक पौधा लगाए तो आगामी पाँच वर्षों में जंगल पुनः हरे भरे हो जाएंगे, वैश्विक ऊष्मीकरण घटकर तापमान संतुलन हो जाएगा, लाभ ही लाभ।पीपल, नीम, तुलसी, बरगद, आंवला आदि अति महत्वपूर्ण वृक्ष लगाएं।ये वृक्ष हर दृष्टि से उपयोगी। प्रत्येक व्यक्ति यह संकल्प करें कि जीवन मे न्यूनतम एक पौधे को वृक्ष बनता हुआ देखने का सौभाग्य प्राप्त करें।