-अभिषेक कुमार
आज भारत जब महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती मना रहा है। गांधी का प्रासंगिक होना राजनीतिक गलियारों में स्पष्ट तौर पर दिखाई पड़ रहा है। गांधी सरकारी दफ्तरों के दीवारों पर फूल, मालाओं के साथ, भाषणों और गांधी के साथ सुशोभित किये जाते रहे हैं। 15 जून 2007 से संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा महात्मा गांधी के जन्म दिवस को अंतर्राष्ट्रीय अंहिसा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। महात्मा गांधी के कई सपनों में एक सपना स्वच्छ भारत का सपना भी शामिल था। महात्मा गांधी ने स्वच्छता अभियान की शुरूआत पहले खुद में बदलाव लाकर किया था, उसके बाद उन्होंने राष्ट्र को प्रेरित किया था। भारतीय मनीषियों ने भी स्वच्छ वातावरण में स्वच्छ मन का निवास बताया है। महात्मा गांधी ने भी अपने संपूर्ण जीवन में भारत की तरक्की के लिए स्वच्छता को हमेशा तवज्जो दिया। गांधी ने ‘स्वच्छता से सत्याग्रह’ की बात की थी। महात्मा गांधी के उसी सपने को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल के पहले ही वर्ष 2014 में महात्मा गांधी के 145 वें जन्मदिन 2 अक्टूबर को गांधी के स्वच्छता अभियान को स्वच्छ भारत अभियान के रूप में पुर्नजीवित किया। संप्रग सरकार में यह योजना ‘निर्मल भारत योजना’ के नाम से चलाई जा रही थी। हालांकि मोदी सरकार द्वारा आरंभ किये गये ‘स्वच्छ भारत अभियान’ उनकी बहुप्रतिष्ठित योजना बनकर अपने चौथे साल में पहुंच चुका है। इस बार पूरी केंद्र सरकार के साथ भाजपा और उनकी अन्य सहायोगी पार्टियां 15 सितम्बर 2018 से ही ‘स्वच्छता ही सेवा है’ अभियान में गांधी के सपनों का भारत बनाने में जोर-शोर से लगे हैं। सरकार के सभी मंत्रियों के अलावा भाजपा के सभी नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी की इस योजना को साकार करने के लिए हाथों में ज्ञाड़ू पकड़ कर तस्वीरों में पूरी तन्मयता के साथ दिखाई दे रहे थे।
स्वच्छ भारत मिशन केंद्र की मोदी सरकार का ऐसा स्वप्न है जिसके अंतर्गत सरकार भारत को 2019 तक खुले में शौच से मुक्त बनाने की कवायद में जुटी है। इसी योजना के तहत स्चच्छता सर्वेक्षण प्रारंभ किया गया। राष्ट्रीय सैंपल सर्वे ऑफिस की सहायता से वर्ष 2015 में ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता सर्वे कराया गया। 2015 में यह सर्वे मैदानी क्षेत्रों के न्यूनतम 1050 जिलों के घरों में कराया गया। वहीं उत्तर -पूर्वी क्षेत्रों के साथ विशेष श्रेणी के राज्यों के न्यूनतम 350 जिलों के परिवारों में कराया गया। जिसमें 75 जिलों को स्वच्छ माना गया। इसमें से 53 जिले मैदानी क्षेत्रों के और 22 जिलों में उत्तर-पूर्वी राज्यों के साथ अन्य विशेष राज्य भी शामिल हैं। वर्ष 2016 के एनएसएसओ सर्वे के अनुसार इन 75 जिलों को क्यूसीआई की ओर से सबसे स्चच्छ जिले घोषित किये गए। स्वच्छता सर्वेक्षण की यह प्रक्रिया आज तक चलाई जा रही है। इस बार भी 1 अगस्त से 31 अगस्त तक स्वच्छता सर्वेक्षण किया गया। वर्ष 2017 में क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 90 प्रतिशत लोग देश में शौचालय का इस्तेमाल कर रहे हैं।
वर्ष 2017-18 के अनुसार भारत के 296 जिलों के 307,349 जिलों को खुले में शौच से मुक्त किया गया। 8 राज्य और 2 केंद्र शासित राज्य पूर्णतया शौच से मुक्त बताये गये हैं। इन राज्यों में सिक्किम अव्वल दर्जे पर रहा वहीं उसके साथ केरल, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात जैसे राज्यों के अतिरिक्त चंडीगढ़ और दमन और द्वीव जैसे केंद्र शासित राज्य शामिल है।
भारत सरकार का दावा है कि भारत में 2 अक्टूबर 2014 के बाद से आज तक देश में 8,67,20,626 शौचालयों का निर्माण किया गया। देश भर के 521 जिलों को खुले शौच से मुक्त बनाया गया। राष्ट्रीय वार्षिक स्वच्छता सर्वे द्वारा नवंबर 2017 से मध्य मार्च 2018 तक किये गये स्वच्छता सर्वेक्षण के अनुसार भारत के 77 प्रतिशत घरों में शौचालय बनाये गये हैं। 93.4 प्र्रतिशत लोग रोजाना शौचालय का इस्तेमाल कर रहे हैं। 95.6 प्रतिशत लोग खुले में शौच से मुक्त बताये गए हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2018-19 के लिए 15,343 करोड़ रुपये ग्रामीण भारत को स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अंर्तगत दिये हैं। भारत सरकार यह बजट 60:40 से राज्यों के साथ साझा करने की कवायद कर रही है। केंद्र शासित और पिछड़े राज्यों के बीच 90:10 का अनुपात रखा गया है। वर्ष 2018-19 में देश भर में 188 लाख शौचालयों का निर्माण किया जाना तय किया गया है। स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) के लिए इस वित्तीय वर्ष 2018-19 में 2500 करोड़ रुपये बजट में दिये गये हैं। यह वित्तीय वर्ष 2017-18 से 9 प्रतिशत अधिक है।
महात्मा गांधी हमेशा भारत को गांवों का देश कहते थे, क्योंकि भारत की लगभग 70 फीसदी आबादी अभी भी गांवों में ही निवास करती है। इसलिए स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के बजट के अंतर्गत साल दर साल बजट को बढ़ाया जा रहा है। वर्ष 2017-18 में भारत सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के लिए 13,948 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की थी, जो कि वर्ष 2016-17 में 10,500 करोड़ रुपये थे। यह वर्ष 2018-19 में 15,343 कर दिया गया है। इस प्रकार महात्मा गांधी द्वारा देखा गया स्वच्छ भारत का सपना मोदी सरकार का महात्वाकांक्षी योजनाओं में से एक बन गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2019 तक भारत को खुले में शौच से मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है। लेकिन स्वच्छ भारत मिशन में सरकार द्वारा विज्ञापनों पर खर्च की गई राशि मात्र एक वर्ष 2015 में ही 100 करोड़ रुपये आंके गए थे। यह सरकार की काम से अधिक प्रचार पर ध्यान की बात को भी सत्यापित करता है।
भारत सरकार द्वारा वर्ष 2019 तक महात्मा गांधी के 150 वीं जन्मतिथि पूरी होने तक उनके स्चच्छ भारत के सपने को साकार करने के लिए 62000 करोड़ रुपये अनुमानित किये गये हैं। वर्ष 2019 तक स्वच्छ भारत अभियान के लक्षित 62000 करोड़ रुपये के खर्च पर अब तक ही करीबन 50 हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुकी है। ऐसे में वर्ष 2019 तक इस लक्ष्य की प्राप्ति मात्र इस बजट में हो जाना यह अभी तक एक दीवास्वप्न की भांति ही नजर आ रहा है।
आज स्वच्छ भारत की योजना को सफलतापूर्वक साकार करना सिर्फ सरकार का काम ही नहीं वरन् भारतीय जन का भी काम है। भारत के लोगों को यह समझना होगा कि गांधी का सपना सिर्फ एक सरकार का सपना नहीं है, बल्कि भारत के निर्माण के सपने में सभी की भागेदारी होनी आवश्यक है। सरकार द्वारा खर्च किये गए विज्ञापनों और योजनाओं का लाभ उठाने के अतिरिक्त गांधी द्वारा सुझाये गए उपायों को जीवन में चरितार्थ करने के साथ ही स्वच्छ भारत का सपना साकार हो सकता है। ग्रामीण भारत हो या शहरी भारत गांधी के विचार और उनकी सोच भारत में सदैव जीवित रहेगी, बस भारतीय जनता को उस पर अम्ल करके भारत निर्माण को सफल बनाने का दायित्व सरकार के साथ अपने हाथों में लेना होगा।