– सबलोक कुमार सिंह

यूँ तो प्रधानमंत्री अपने कार्यकलापों से एवम अपने मस्जिद मंदिर दौरे से आजकल फिर सुर्खियों में हैं, लेकिन यक़ीन मानिये आज की राजनीति ने इनके इन्हीं क़दमों से विपक्ष को एक मुद्दा भी दे दिया है. चाहे वो अपने 68 वें में जन्मदिन पर वाराणसी का दौरा हो या पिछले सप्ताह इंदौर में मुस्लिम वोहरा समाज के प्रति अपनी उपस्थिति एवम उनका वक्तव्य, विपक्ष को 2019 का अल्टीमेटम उन्होंने अपने पुराने अंदाज़ में देना शुरू कर दिया है. यक़ीन मानिये 2019 की राजनीति मंदिर मस्जिद के ही आगे टिकी होगी, क्यूंकि तमाम विपक्षी पार्टियों में वो जोश और उत्साह नहीं दिख रहा जो 2012 -14 में भाजपा के विपक्ष में रहते दिखा था.

विपक्ष में रहे आज के भाजपाई नेताओं का महंगाई के खिलाफ धरना-प्रदर्शन और यूपीए सरकार को घोटालों से लेकर पेट्रोल-डीजल पर चौतरफा घेरने वाला देश व्यापी आंदोलन किया जा रहा था. आज की विदेशमंत्री सुषमा स्वराज का मंहगाई पर पार्टी डांस, स्मृति ईरानी का वो प्रोटेस्ट, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का सड़क पर बैठकर हाय-तौबा मचाना एवं अन्य भाजपाइयों का साइकिल चलाकर डीज़ल-पेट्रोल के प्रति नाराजगी दर्शाने वाला चुनावी स्टंट कर जनता को यूपीए सरकार के खिलाफ करने की मुहीम चल पड़ी थी.

निश्चित रूप से महागठबंधन की तमाम पार्टियों में 3 या 4 पार्टियों को छोड़कर अभी भी एकता और सत्ता में विपक्ष की भूमिका का पता नहीं है. कमोवेश राजनीति के मायने बदल गए हैं, क्योकि इसका बड़ा कारण देश में भाजपा का कॉग्रेसीकरण हो जाना और विपक्ष कमजोर का धराशाई हो जाना है. ऐसे में प्रधानमंत्री का मंदिर-मस्जिद भर्मण करना कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी, यहाँ देखने लायक यह है कि विपक्ष भाजपा और नरेंद्र मोदी को कैसे घेर पाती है, चूँकि इस साल भी 4 राज्यों के विधानसभा चुनाव सामने है और 2019 का महासमर भी आने वाला है विपक्ष को अपनी तैयारियों की ओर ध्यान देना चाहिये.